सुलतानपुर। मोदी के नोटबन्दी का सीधा असर मजदूरों पर पड़ रहा है। मोदी के तुगलकी फरमान का भारतीय मजदूर संघ विराध करती है अगर जल्द हालात न सुधरे तो संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर सड़कों पर उतरकर विरोध करेगें उक्त बातों का निर्णय जनपद के मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष राकेश शर्मा ने कार्यालय पर एक समीक्षा बैठक में कही।
गौरतलब हो कि केन्द्र की भाजपानीत सरकार की नीति मजदूरों के अनुकूल नहीं जान पड़ती है, सरकार के प्रधानमंत्री मोदी व वित्त मंत्री अरूण जेटली मजदूरों, किसानों व महिलाओं के घोर विरोधी नीतियां बनाते जा रहे है। कल-कारखाने, छोटे उद्योग जिसमें पूर्णतया भारतीय मजदूर काम करते है वो भी ज्यादातर उ.प्र. और बिहार के है आज अपना घर-बार छोड़ अन्य प्रदेशों में मजदूरी कर रहे है, नोट बन्दी की मोदी की स्कीम में ‘‘विदेशी हाथ’’ दिखाई पड़ता है। कारण साफ है कि छोटे मझोले उद्योग शुद्ध-विशुद्ध भारतीयों के है और उसमें कार्य करने वाले मजदूर भी भारतीय है नोट बन्दी और बैकों से निकासी पर बैन और लिमिट बाध देने पर इन छोटे उद्योगों का तो माल न तो बिक रहा है नही उत्पादन ही हो रहा है जिसके चलते मजदूरों की बड़े पैमाने पर छटनी और निष्कासन शुरू हो चुका है। मोदी की स्कीम के तहत अगर छोटे उद्योग बन्द होगें तो जापान और आस्टेªलिया का माल ज्यादा बिकेगा और मोदी की दोस्ती पक्की होगी। घर से दूर रहने वाले मजदूर बेसमय बेरोजगार होकर अपना सामान तक बेच कर वापस लौट रहे है वहीं कल-कारखाने मजदूरों को नकद वेतन तक नहीं दे रहे है। कमोवेश यही हाल सरकारी योजनाओं का भी है जहां न तो बजट है न काम हो रहा है, मनरेगा मजदूर भुखमरी के कगार पर आ गये है। जिला मंत्री दिनेश उपाध्याय ने कहा कि महिलाओं की स्थिति नोट बन्दी के बाद सबसे ज्यादा खराब हो गई है। घर के खर्च से बचाकर 1000 व 500 की नोट साड़ी की तह में जमाकर रखा था अब मोदी उस घरेलू बचत के दुश्मन बन गये है। घर की बहू बेटियों को बैकों में लाइन लगवा रहे है। आंगनबाड़ी संघ अध्यक्ष रेखा मौर्या ने कहा कि मोदी सरकार बीते ढ़ाई वर्षो से देश की 40 लाख महिलाओं को न्यूनतम वेतन के नाम पर टाल-मटोल कर रहे है और अब बैंक में अपनी मेहनत की कमाई निकालने पर रोक लगा रखी है। आशा बहू संघ अध्यक्ष गुंजा सिंह ने कहा कि आशा बहुओं के गर्भवतियों की रात-दिन सेवा के पश्चात चंद रूपये सरकारी व कुछ उपहार में मिलते थे महिला विरोधी प्रधानमंत्री के एक फरमान ने सबकुछ बंद कर दिया है। लोगों के हाथ में जब ईलाज कराने का पैसा नहीं है तो कौन आशा बहू को देगा, छह माह से पारिश्रमिक भी नहीं मिला है मोदी के न घर है न परिवार न पत्नी है बच्चे उन्हें क्या मालूम। घर परिवार कैसे चलता है अबकी चुनाव में नोट की चोट का हिसाब यूपी की महिलाएं जरूर करेंगी।
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