सिंधु समझौते पर पीएम मोदी का गंभीर रुख

नई दिल्‍ली: पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिकारियों के साथ एक बैठक की है. सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री ने बैठक में कहा कि एक समय में ख़ून और पानी दोनों नहीं बह सकते. बैठक में पीएम के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश सचिव ए जयशंकर, दो प्रिंसिपल सेक्रेटरी, जल संसाधन सचिव भी मौजूद थे.

करीब एक घंटे चली बैठक में पीएम मोदी सिंधु समझौते पर गंभीर दिखे। बताया जा रहा कि पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों की फिर से समीक्षा करने को कहा गया है। सरकार अब बिजली परियोजनाएं बनाने पर विचार करेगी। तुलबुल परियोजना को शुरू किया जा सकता है। पाकिस्तान को ज्यादा पानी लेने से रोका जा सकता है।

इस बैठक में विदेश मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारी शामिल हुए। जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस बैठक में शामिल नहीं थीं। बैठक में विदेश सचिव एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पीएम के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र शामिल थे। इसके अलावा इन दोनों मंत्रालयों के अन्य अधिकारी भी शामिल हुए।

बैठक में सिंधु जल संधि से जुड़े तमाम पहलुओं और विकल्पों पर चर्चा होगी। खबरों के मुताबिक सरकार संधि तोड़ने जैसा कदम तो नहीं उठााएगी, लेकिन नदियों को जोड़ने सहित कुछ ऐसे विकल्पों पर विचार और चर्चा करेगी जिससे भारत के हितों को नुक्सान ना पहुंचे और पाकिस्तान को भी झटका लगे। अब तक भारत ने बेहद उदारता दिखाते हुए तीन नदियों का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ रखा है।
सिंधु नदी पर आश्रित पाकिस्तान
बता दें कि पाकिस्तान का एक बड़ा इलाका सिंधु नदी के पानी पर आश्रित है। विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितंबर 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने इस समझौते पर मुहर लगाई थी। संधि के मुताबिक भारत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, व्यास और रावी नदी का पानी देगा। मौजूदा समय में इन नदियों का 80 फीसदी से ज्यादा पानी पाकिस्तान को ही मिलता है।
अगर भारत ने इन नदियों का पानी पाकिस्तान को देना बंद कर दिया तो पाकिस्तान की कृषि और जल आधारित उद्योग-धंधे चौपट हो जाएंगे क्योंकि पाकिस्तान की आधी से ज्यादा खेती इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है। हालांकि सिंधु जल संधि तोड़ने के मुद्दे पर जानकार एकराय नहीं हैं। ज्यादातर का मानना है कि ये समझौता पिछले 56 साल से बगैर किसी रुकावट के जारी है। इस दौरान भारत-पाकिस्तान के रिश्ते कई बार बद से बदतर हुए, लेकिन सिंधु जल संधि पर कोई असर नहीं पड़ा।

सिंधु जल संधि के बाद भारत पाकिस्तान के बीच 3 युद्ध हुए। दोनों देशों के बीच पहली जंग 1965 में हुई। 1971 में बांग्लादेश की आजादी की जंग हुई और 1999 में करगिल युद्ध। इस दौरान पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कई बार हिंदुस्तान को दहलाने की भी कोशिश की।
2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमला, 2008 में 26/11 आतंकी हमला, जिसे 10 पाकिस्तानी आतंकियों ने अंजाम दिया था। गुरदासपुर के दीनानगर पुलिस स्टेशन पर आतंकी हमला, पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला समेत कई बड़े आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ है, लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी सिंधु जल संधि बदस्तूर कायम रही।

इन हमलों के बाद भी सिंधु जल संधि बरकरार रही हालांकि 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस संधि को खत्म करने की मांग जरूर उठी थी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। जानकारों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे एकतरफा फैसले से तोड़ पाना आसान नहीं। अगर ऐसा किया गया तो दुनिया के सामने यह संदेश जाएगा कि भारत कानूनी तौर पर लागू संधि का उल्लंघन कर रहा है। जानकारों के मुताबिक दोनों देश आपसी सहमति से इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या नई शर्तों पर नया समझौता बना सकते हैं, लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा नामुमकिन है।