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देश में असंतोष बढ़ने पर गोविंदाचार्य ने जताई चिंता

नई दिल्ली : आजादी के 69 साल बाद भी देश में असंतोष बढ़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए जाने माने चिंतक के.एन. गोविंदाचार्य ने कहा कि पिछले सात दशकों में देश ने बहुत सरकारें देखी, बहुत सारी व्यवस्थाएं भी बनीं लेकिन रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार और शिक्षा में से एक का भी पूरा इंतजाम नहीं हो सका। ऐसे में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई तो अभी बाकी है। प्रकृति केंद्रित विकास को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की अर्थनीति और राजनीति गौ, गंगा के अनुकूल हो यही व्यापक लोकहित में उठाया गया कदम होगा।

गोविंदाचार्य ने सवाल किया, ‘आखिर, आजाद भारत में इतना असंतोष क्यों है, इसका क्या कारण हो सकता है? और दिन पर दिन असंतोष की खाई बढ़ती ही जा रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? देश में फैल रहे इन असंतोषों से कैसे निपटेंगे? वास्तव में इस व्यवस्था में इसका कोई पुख्ता हल है क्या? उन्होंने कहा कि देश ने पिछले 69 सालों में बहुत सरकारें देखी, यहां से वहां तक बहुत सारी व्यवस्थाएं भी बनीं। लेकिन किसी भी प्रकार से रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा में किसी एक का भी पूरा इंतजाम नहीं हो सका। इसके लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाए?

उन्होंने बातचीत में कहा कि आजादी के बाद हमने अंग्रेजों की अनेक व्यवस्थाओं को अपनाया जो लूट सिस्टम था। अंग्रेजी व्यवस्था बनीं ही थी भारत को बांटकर, आपस में लड़ाकर हमेशा राज कायम रखने की और उस व्यवस्था को ही आज हम अपने उत्थान का मार्ग मान बैठे हैं।

गोविंदाचार्य ने कहा, गांधीजी कहा करते थे कि अंग्रेजों की व्यवस्था चली जाए तो ही मैं समझूंगा कि स्वराज आ गया। अंग्रेज चले जाएं पर उनकी व्यवस्थाएं रह जाएं तो मै समझूंगा कि स्वराज नहीं आया। गांधीजी की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई सिर्फ सत्ता हस्तांतरण के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन उनका मुख्य उदेश्य था। क्योंकि अंग्रेजों के बनाए प्रशासनिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था भारत को कमजोर करके भारतीयों पर राज करने की थी।

आरएसएस के प्रचारक रहे गोविंदाचार्य ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत पर राज कायम रखने के लिए 90 सालों में कई व्यवस्थाएं बनायी थी जिसका एक इतिहास है। इसे समझने की जरूरत है। 1935 में भारत शासन अधिनियम के तौर पर अंग्रेजों ने एक व्यवस्था बनाई थी जो बांटो और राज करो पर आधारित थी।

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