वेटिकन सिटी। गरीबों के जीवन समर्पित कर देने वाली विश्व विख्यात नन मदर टेरेसा को आज औपचारिक तौर पर संत की उपाधि से नवाजा गया। वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने का ऐलान किया। इस ऐतिहासिक पल का लाखों लोग गवाह बने। अब उन्हें संत मदर टेरेसा के नाम से जाना जाएगा।
पोप फ्रांसिस एक लाख तीर्थयात्रियों की मौजूदगी में एक सामूहिक कैननाइजेशन सभा की अध्यक्षता की। इस दौरान सेंट पीटर्स बेसीलिका पर मदर टेरेसा का एक बड़ा चित्र लगा है, जिसमें मदर नीचे लोगों की ओर देखते हुए मुस्कुरा रही हैं। इस दौरान भारत में कोलकाता, गोवा सहित कई शहरों में प्रार्थना सभा रखी गई। लाखों लोग चर्च में जुटे और इस ऐतिहासिक पल के लिए दुआएं कीं।

मदर टेरेसा को संत की उपाधि उनकी 19वीं पुण्यतिथि से एक दिन पहले दी गई। मदर टेरेसा का निधन 87 साल की उम्र में कोलकाता में हुआ था। अपना वयस्क जीवन उन्होंने यहीं गुजारा था। अपना पहला अध्यापन और फिर गरीबों की सेवा का काम भी उन्होंने इसी शहर में शुरू किया था।
गरीबों की सेवा के काम ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रमुख रही मदर को धरती की सबसे मशहूर महिलाओं में से एक बना दिया। मेसेडोनिया की राजधानी स्कोप्ये में कोसोवर अलबानियाई माता-पिता के यहां जन्मी मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार मिला था। उन्हें दुनियाभर में आत्म बलिदान एवं कल्याण से जुड़े ईसाई मूल्यों की एक मशाल के तौर पर देखा गया।

धर्मनिरपेक्ष आलोचक मदर टेरेसा की आलोचना भी करते रहे। उनका आरोप था कि मदर टेरेसा को गरीबों की स्थिति में सुधार लाने के बजाय धर्मप्रचार की ज्यादा चिंता थी।
नन की विरासत को लेकर बहस उनके निधन के बाद भी जारी रही। कई शोधकर्ताओं ने उनके धर्मसंघ की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया और मरीजों को उपेक्षा बढ़ने, स्वास्थ्यकर स्थितियों और उनके मिशनों में कमजोर लोगों के सवालिया धर्मांतरण को लेकर साक्ष्य पेश किए। एक मरते हुए मरीज का हाथ थामने वाली उनकी छवि के जवाब में उनकी एक ऐसी तस्वीर पेश की गई, जो उन्हें हमेशा निजी विमान में ही यात्रा करने में सहज महसूस करने वाली महिला के तौर पर चित्रित करती है।
पोप फ्रांसिस जब आज ‘गरीबों के लिए गरीब चर्च’ के अपने दृष्टिकोण को साकार करने वाली इस महिला को श्रद्धांजलि देंगे, तब संशयवादी लोग वेटिकन में मौजूद नहीं होंगे।

मदर टेरेसा को आधिकारिक तौर पर संत बनाने के लिए जरूरी था कि उन्होंने कुछ चमत्कार किए हों। नेशनल कैथोलिक रजिस्टर के अनुसार, पहला चमत्कार भारत के पश्चिम बंगाल में हुआ और इसमें मोनिका बेसरा नामक एक भारतीय महिला स्वस्थ हो गई। मोनिका को पेट में ट्यूमर था। यह इतना अधिक था कि डॉक्टरों ने उसके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी।
‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी में उपचार के दौरान भी उनकी सेहत गिरती रही। उन्हें ट्यूमर के कारण इतना अधिक दर्द था कि वह सो भी नहीं पाती थी। मदर टेरेसा के गुजरने के बाद, वहां मौजूद सिस्टर्स ने मदर के शरीर से छुआए गए एक ‘चमत्कारी मेडल’ को मोनिका के पेट से स्पर्श कराया। पीड़ा से कराह रही महिला सो गई और जब वह उठी तो उसका दर्द जा चुका था। तब डॉक्टरों ने उसकी जांच की और पाया कि ट्यूमर पूरी तरह से गायब हो चुका था।
साल2003 में हुए इस चमत्कार को लेकर फैली खबरों को गलत बताते हुए द न्यूयार्क टाइम्स ने डॉक्टर रंजन मुस्तफी के हवाले से कुछ जानकारी दी थी। मोनिका का इलाज करने का दावा करने वाले इस डॉक्टर ने कहा था कि उन्होंने कुछ दवाएं बताई थीं, जिन्होंने ट्यूमर को गायब कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह तपेदिक के कारण हुई एक गांठ थी, न कि कैंसर का ट्यूमर। उन्होंने कहा कि वैटिकन का दल भारत आया और उसने मोनिका की बात को प्रमाणित कर दिया। कभी भी मुझसे संपर्क नहीं किया।
नेशनल कैथोलिक रजिस्टर के अनुसार, चिकित्सा विशेषज्ञों के एक दल ने कथित चमत्कार का अध्ययन करने के लिए ‘कॉन्ग्रेगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स’ के साथ काम किया। रिकॉडों का आकलन और इलाज में शामिल रहे चिकित्सा कर्मचारियों से पूछताछ करने के बाद, समिति ने यह तय किया कि महिला का स्वस्थ होना, चिकित्सीय रूप से संभव नहीं था। पोप जॉन पॉल ने टेरेसा के निधन के महज पांच साल बाद 20 दिसंबर 2002 को इसे चमत्कार के रूप में मंजूरी दे दी थी।
लेकिन 2003 में न्यूयार्क टाइम्स से बातचीत करते हुए मोनिका के चिकित्सक मुस्तफी ने कहा था कि यह कोई चमत्कार नहीं था। उसने नौ माह से एक साल तक दवाएं ली थीं। नेशनल कैथोलिक रजिस्टर के अनुसार, दूसरा चमत्कार दिसंबर 2008 में ब्राजील में हुआ। ब्राजील के सांतोस के 42 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर मार्सीलियो हेडाड एंड्रिनो को मस्तिष्क में बैक्टीरिया का संक्रमण हो गया था। इसके कारण मस्तिष्क में एक बड़ा फोड़ा हो गया था और सिर में भारी दर्द उठता था।