नई दिल्ली: देश में बढ़ते वायु प्रदूषण का सबसे अधिक खामियाजा दिल्लीवालों को भुगतना पड़ रहा है। वायु प्रदूषण के कारण देश में एक व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा में 3.4 वर्ष की कमी आई है, वहीं दिल्लीवालों के जीवन प्रत्याशा में 6.3 साल की कमी देखने को मिली है।
पुणे की इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरोलॉजी (आईआईटीएम) के अध्ययन में पाया गया है कि जीवन प्रत्याशा में कमी आना चिंता का विषय है।
पिछले सप्ताह विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया का 11वां सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। वहीं बिहार और पश्चिम बंगाल में जो लोग रहते हैं उनकी जीवन प्रत्याशा में क्रमशः 5.7 और 6.1 वर्ष की गिरावट आई है।
अध्ययन के अनुसार, 2011 की जनगणना के आधार पर पीएम2.5 (यानी वायु में 2.5 माइक्रोन्स से कम दूषित कण, जिसे हम सांस में ले सकते हैं) से हर साल 5 लाख 70 हजार भारतीयों की मौत हो रही है। ग्राउंड लेवल ओजोन (03) के कारण 31 हजार लोगों की मौत हुई।
आईआईटीएम के प्रमुख जांचकर्ता सचिन घुडे ने बताया कि तेजी से होते औद्योगीकरण, शहरीकरण और यातायात के कारण होने वाले प्रदूषण से पिछले दो दशक में वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है। यातायात, उद्योग और ऊर्जा क्षेत्रों, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन के साथ भारत में बढ़ती आबादी के कारण ओजोन (03) और पीएम2.5 के स्तर में वृद्धि होगी, जो बढ़ रही आबादी के लिए हानिकारक होगी।
जीवन प्रत्याशा दर एक दी गई उम्र के बाद जीवन में शेष बचे वर्षों की औसत संख्या है। एक व्यक्ति के औसत जीवन काल के अनुमान को जीवन प्रत्याशा के तौर पर परिभाषित किया गया है।