नई दिल्ली : धर्म को टकराव की वजह नहीं बनाने की बात पर जोर देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि अलग-अलग समुदायों के बीच ‘सहनशीलता’ एवं सद्भाव की भावना की हिफाजत ‘बेहद सावधानी और मुस्तैदी’ से किए जाने की जरूरत है।
भारत के 66वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने महात्मा गांधी का कथन याद दिलाते हुए हुए कहा, ‘धर्म एकता की ताकत है। हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते।’ उन्होंने कहा, ‘भारत की प्रज्ञा हमें सिखाती है : एकता ताकत है, प्रभुता कमजोरी है।’
राष्ट्रपति ने कहा, ‘भारतीय संविधान लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है। यह ऐसे भारत के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का पथप्रदर्शक है, जिसने प्राचीन काल से ही बहुलता का सम्मान किया है, सहनशीलता का पक्ष लिया है और अलग-अलग समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया है।’
उन्होंने कहा, ‘बहरहाल, इन मूल्यों की हिफाजत बेहद सावधानी और मुस्तैदी से किए जाने की जरूरत है।’ राष्ट्रपति की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कुछ दक्षिणपंथी पार्टियां ‘घर वापसी’ का मुद्दा उठाकर, महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमा-मंडन कर, हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ाने के लिए महिलाओं को 10-10 बच्चे पैदा करने की नसीहत देकर विवाद पैदा कर रहे हैं और कुछ मंत्री भी अल्पसंख्यकों के बारे में अनुचित बयान देते रहे हैं।
प्रणब ने कहा, ‘लोकतंत्र में निहित स्वतंत्रता कभी-कभी उन्मादपूर्ण प्रतिस्पर्धा के रूप में एक ऐसा नया कष्टप्रद परिणाम सामने ले आती है जो हमारी परंपरागत प्रकृति के विरुद्ध है। वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है। गांधी जी ने कहा था कि धर्म एकता की ताकत है । हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते।’
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