भारत युवाओं का देश है। भारत जनसँख्या के मामले में भले ही दुसरा नम्बर हो, क्षेत्रफल में सातवां लेकिन जनसँख्या के मुकाबले सबसे अधिक युवाओं वाला देश है। वैसे तो यह आंकडे हमे एक पल के लिए खुश तो करते हैं, लेकिन अगले ही पल जब दिनों दिन बढती हुई बेरोजगारी को देखते हैं तो चिंतित होना स्वाभाविक हो जाता है। अब यह चिंता करने वाले हम आप न तो अकेले हैं और न पहले, यह चिंता तो बहुत पहले से ही हमारे आपके बीच से निकल कर सरकारों ,स्वयंसेवी संस्थाओ तक में निरंतर चलती रहती है। वैसे इस बढती हुई बेरोजगारी का सबसे प्रमुख कारण है युवाओं के स्किल डेवलपमेंट के लिए उठाये जा रहे कदम हर तरह से नाकाफी है।अब तक इसके लिए क्या हुआ क्या नहीं यह चर्चा का विषय नहीं है।अब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अच्छे दिनो का वादा किया था। वह मेक इन इंडिया की बात करते है। उसके लिए सबसे जरुरी है कि भारत में प्रशिक्षित कामगारों की उपलब्धता। मोदी जी अपने भाषणों में लगातार स्किल स्केल और स्पीड की बात करते हैं उनका यह भी कहना है कि भारत को अगर 10 फीसदी विकास दर चाहिए तो विकास को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना होगा। इसके लिए इन तीनों सूत्रों पर विधिवत और लगातार काम करना होगा। मेरा मानना है की इनमे सबसे महत्वपूर्ण स्किल यानि कौशल है. और यह तो सीधी सी बात है कि जब हमारे युवाओं में कौशल होगा तभी हम बड़े पैमाने पर काम करते हुए तेज़ी से आगे बढ़ सकेंगे एवं विकास की रफ़्तार को पकड़ सकेंगे। 

 हमारा ही पडोसी देश चीन है जोकि जनसँख्या एवं क्षेत्रफल में हमसे ज्यादा होते हुए भी बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है। जिसका सबसे बड़ा कारण है की चीन ने अपने मैनुफैचरिग सेक्टर को बहुत बढ़ा दिया है। जिसका नतीजा है की मेड इन चाइना के उत्पादों से दुनिया के बाज़ार पटे हैं। वहीँ इसके उल्ट भारत ने सर्विस सेक्टर में तो बेशुमार प्रगति की। जिसके फलस्वरूप भारत आई टी और बीपीओ के क्षेत्र में तो महाशक्ति के रूप उभर कर दुनिया के सामने आया लेकिन मैनुफैचरिग सेक्टर में स्थिति जस की तस रही और इन आई टी और बीपीओ की कम्पनीयों में लगने वाले सामानों को भारत में बनाए जाने के विपरीत निर्यात पर ही निर्भर रहे।

विश्व के अनेक विकसति देशों ने अपने यहाँ युवाओं के स्किल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट खोले हैं। अगर आंकड़ों की बात करें तो चीन में 5लाख ,जर्मनी और 

 आस्ट्रेलिया जैसे देशों में 1-1 लाख स्किल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट हैं जो लम्बे समय से वहां कामगार युवाओ को तैयार कर रहे हैं। हम चीन से बड़ी महाशक्ति तो बनना चाहते हैं लेकिन सिर्फ बातों से जबकि चीन अपनी GDP का 2.5% सिर्फ व्यवसाईक शिक्षा पर खर्च करता है और हम बड़ी मुश्किल से 0.1% ही खर्च कर पाते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में  15 से 29 साल की उम्र के युवाओ की इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद संस्थागत व्यवसाईक प्रशिक्षण सिर्फ दो फीसदी को ही और गैर संस्थानिक प्रशिक्षण सिर्फ आठ फीसदी को ही मिल पाया हैं  जबकि यह आंकड़ा कोरिया में 96 % , जर्मनी में 75% , जापान में 80% और इंग्लॅण्ड में 68 % है। एक तरफ तो भारत में सबसे बड़ा संकट कुशल कामगारों का है तो वही दूसरी तरफ 30 करोड़ से अधिक की आबादी आंशिक या पूर्ण रूप से बेरोजगार हैं। आज हमारी वह 99 करोड़ की जनसख्या जो कम करना चाहती है, उसमें से 3 करोड़ संगठित, और 46 करोड़ असंगठित क्षेत्र में काम कर रही है। करीब 4 करोड़ लोग रोजगार कार्यालय में पंजीकृत है और वहीँ 26 करोड़ लोग कहीं भी पंजीकृत नहीं है। आंकड़ो के मुताबिक इसी आबादी में हर साल करीब 1 करोड़ से अधिक युवा और जुड़ जाते है। जिनमे से 80 % की कोई व्यवसाईक शिक्षा नही हुई होती। अब जबकि आने वाले पांच सालों के बाद हमारे देश में करीब 5 करोड़ काम करने योग्य अतिरिक्त युवा होंगे तो वहीँ दुनिया में 6 करोड़ की श्रमशक्ति का आभाव होगा अगर स्किल डेवलपमेंट के लिए सही तरीके से काम हो तो इस आभाव को भारत पूरा कर सकता है।

 अब एक बात तो बिलुकल साफ है कि विकासदर तभी बढ़ सकती है जब देश में उत्पादन बढेगा और वह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंचेगा। आज भी हम पूरी दुनिया में केवल कच्चा मॉल भेजने के लिए ही जाने जाते है। पूरी दुनिया में मेड इन इंडिया पहुंचे तो इसके लिए सबसे जरुरी है कि भारत में मैनुफैचरिग सेक्टर को बढ़ावा मिले। मैनुफैचरिग सेक्टर आगे तभी बढ़ सकता है जब बहुत बड़ी संख्या में कुशल कामगार हों। वैसे यहाँ यह भी बताना जरूरी होगा कि भारत सरकार ने वैश्विक परिदृश्य की आवश्यकताओ को ध्यान में रखते हुए 2032 तक 55 करोड़ युवाओ के स्किल डेवलपमेंट करने का निर्णय लिया है।

 यह पहली बार नहीं है आज़ादी से लेकर आज तक बहुत सारी न्रीतियाँ बनी और बिगड़ी !! हम बड़ी बड़ी फैक्ट्रियो के चक्कर में कुटीर उद्योगों को भूल गए 6 आई आई टी पर ध्यान देते देते 6000 आई टी आई बर्बाद हो गए आई टी आई के आधुनिकीकरण और क्षमता विकास पर कोई काम नहीं हुआ। इस दशा में 60 से 65 करोड़ युवाशक्ति का फायदा देश को कैसे हो पाता। हालात इस कदर ख़राब हैं कि संगठित क्षेत्र में कुल आठ फीसदी नौकरियां है जिनमे से 3 फीसदी सरकारी और 5 फीसदी गैरसरकारी क्षेत्रों में और 92 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं।

 मोदी सरकार ने बेरोजगारी की समस्या को ध्यान में रखते हुए स्किल डेवलपमेंट नाम से अलग मंत्रायल बना कर अपनी गंभीरता देश के प्रति दिखयी है। हम उम्मीद कर सकते हैं की आने वाले समय में विभिन्न संगठनो को लेकर यह मंत्रालय युवाओं के स्किल डेवलपमेंट और रोजगार के लिए सफल और सार्थक पहल करेगा। अगर देश को प्रगति के रथ पर सवार होकर आगे बढ़ना है तो हर एक के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगें जिसका एक मात्र रास्ता स्किल डेवलपमेंट ही है। इसके लिए कई स्तरों पर जैसे स्कूल , कालेजों ,NGO और निजी क्षेत्रों के साथ सरकार को समन्वय बना कर युवाओ के स्किल डेवलपमेंट के लिए काम करना होगा।

 हमें सबस पहले अपनी आने वाली पीढ़ी के मन से आई आई टी और आई टी आई के अंतर को मिटाना होगा। उन्हें यह महसूस होना चाहिए कोई भी कोर्स किसी दुसरे से कम महत्व का नहीं है हर एक की अपनी उपयोगिता है। इस तरह वे आनेवाले समय में अच्छा जीवन व्यतीत कर सकेंगे । इसके लिए हमे अपने पाठ्यक्रम को बदल कर उसमे स्किल डेवलपमेंट को भी शामिल करना होगा हलाकि पिछले कुछ वर्षों में कुछ NGO इस काम में आगे आकर प्रयास कर रहे हैं लेकिन वह नाकाफी है। उत्तर पूर्व और कश्मीर जैसे कठिन क्षेत्रों में अलग से काम करने की जरूरत है। अभी निजी क्षेत्र की कम्पनिया अपने लाभ का 2 फीसदी सामाजिक दाईत्व पर खर्च करती है। इसको भी बढ़ना चाहिए। शोध एवं योजना के कार्य के लिए फिक्की और सीआईआई जैसे संस्थानों के साथ काम करने की जरूरत है। निजी क्षेत्र जिस किसी भी अंचल में अपनी इकाई लगाये उसमे वहां के आस पास के युवाओ को दो तरह से प्रशिक्षण दे, उन्हें अपनी कम्पनी की जरूरतों के हिसाब से प्रशिक्षण दे और अपनी कम्पनी में ही रोजगार देकर विकास का भागीदार बनाये।

 भारत की आधी आबादी उत्तर प्रदेश बिहार उड़ीसा राजस्थान और प0 बंगाल में रहती है, जिनकी 60 फीसदी से अधिक की आबादी गावो में रहती है, जो राष्ट्रीय विकास दर से भी बहुत पीछे है। इन क्षेत्रो में स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध होना चाहिए, जैसे डेरी व्यवसाईक खेती, पशुपालन, मुर्गीपालन, खाद्य प्रसंस्करण आदि है। इसके अलावा भौगोलिक जरूरतों के हिसाब से भवन निर्माण ,पर्यटन , खाने पीने के ढ़ाबो से लेकर पांच सितारा होटलों तक एवं आई टी क्षेत्र में बड़ी संख्या में भी रोजगार अवसर उपलब्ध हो सकते हैं। आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ भवन निर्माण में अगले 10 वर्षों में 3.5 करोड़ मजदूरो से लेकर इंजीनियरों की जरूरत पड़ेगी।

 अब तक जो हुआ सो हुआ लेकिन अगर आने वाले सालो में स्किल डेवलपमेंट को देश की जरूरत मान कर काम किया जाय तो बेरोजगारी से मुक्ति मिलने के साथ साथ ही नक्सलवाद ,अलगाववाद ,जैसी समस्यओं से भी छुटकारा मिल सकता है। देश निरंतर प्रगति करेगा और पूरी दुनिया में अपना परम वैभव प्राप्त कर विश्वगुरु बन फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा।

सत्यव्रत त्रिपाठी 

प्रदेश मीडिया प्रभारी 

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