मोहम्मद आरिफ नगरामी

इन्शाह अल्लाह कल 13 रजबुल मुरज्जब के दिन पूरे आलमे इस्ंलाम के साथ साथ इल्म व अदब के मरकज लखनऊ में भी मुसलमानों के चौथे खलीफा, दमाद रसूल स0अ0 हजरत अली रजि0 का यौमे विलादत शान व शौकत और अदब व एहतेराम के साथ मनाया जायेगा। मजहबे इस्लाम में किसी भी शख्स का यौमे विलादत या यौमे वफात मनाना मना है क्योंकि यह दोनों रस्में गैर इस्लामी हे। लेकिन उन अजीम हस्तियों को याद करना या अवाम के सामने उनकी जिन्दगी के हालात को पेश करना जिससे लोग कुछ सीख सकें। या सबक ले सकें। इस हद तक सही है कि उस शख्स के यौमे विलादत या यौमे वफात पर कोई प्रोग्राम न रखा जाये बल्कि किसी और दिन उसके बारे में बताया जाये।

रसूल करीम स0अ0 की वफात के बाद आपके पैगाम की नश्रो इशाअत को जारी व सारी रखने के लिए खुलफाए राशदीन ने अपने कौल व अमल और किरदार से अवाम की रहनुमाई का फरीजा अन्जाम दिया। खुलफाए राशदीन का यह सिलसिला खलीफाए अव्वल हजरत अबू-बरक सिद्दीक़ रह0 से शुरू होकर खलीफाए चहर्रूम हजरत अली रजि0 पर खत्म होता है।

हजरत अली रजि0 तारीख इस्लाम का वह इन्तेहाई मुकद्दस और मोहतरम नाम है। जिसे रसूल करीम स0अ0 की सोहब व माइय्यत का ही नही बल्कि आप के अलहे बैत के जुमरे में शामिल रहने और आप स0अ0 के हिजरत मदीना मुनव्वरा के वक्त रसूल करीम की नियाबत का शर्फ भी हासिल रहा। शेरे खुदा हजरत अली रजि0 जामे कुरआन भी थें और नबी आखरूज्जमा के इन्तेहाई लाडले भी, उन्हे यह भी एजाज हासिल था कि वह नबी हाशिम के अव्वलीन खलीफा भी रहे रसूले खुला स0अ0 के साथ तमाम गजवात में शामिल रहे। हजरत अली रजि0 की जिन्दगी हिम्मत, जुर्रत, सखावत व फय्याजी के इतने वाकियात है कि उनके लिए हजारों सफहात भी नाकाफी है। आप रजि0 के एखलाक व आदात के तजकिरे े के लिए किताबों के ज़खीरे दरकार है अपन रजि0 फजाएल के तजकिरे यही काफी है कि वह रसूले करीम स0अ0 के दादाम थें जन्नत में ख्वातीन की सरदार हजरत फातिमा रजि0 के शौहर नामदार थे और रसूल करीम स0अ0 के लाडले और जिनके नवासों हजरत हसन रजि0 और हजरत हुसैन रजि0 के वालिद महशर थे। हजरत अली करम उल्लाह वजहू की इससे बड़ी फजीलत और क्या होगी। कि उनके बारे में मोहम्मद मुस्तफा स0अ0 का इरशाद है कि जिसका मैं दोस्त हूं उसके अली भी दोस्त हैं। रसूल स0अ0 खुद को इल्म और अली रजि0 को उसका दरवाजा बता कर आप रजि0 आलमाना फंकार को बुलंद फरमाया।

अलगर्ज हजरत अली रजि0 उस मुकर्रम व मुकद्दस शख्सियत का नाम है जिससे मोहब्बत रखना हर मुसलमान के लिए सआदत व फलाह दारीन का जामिन है दौरे हाजिर में एतेहादम मिल्लत व एतेहाद मिल्लत के लिए हजरत अली रजि0 की तालीमात पर अमल करना बहुत जरूरी है हजरत अली रजि0 ने अपनो या गैरों से हजारहां एखतलाफात के बावजूद भी राहे हक से मुंह नही मोड़ा। जिस बात को उन्हेाने हक जाना उसके लिए मियान से तलवार निकालने में न तो उनहेाने अपने साथियों की कोई परवाह की और न ही एखतलाफ की शक्ल में कोई ऐसा काम किया जिससे उनकी नफ्स परस्ती साबित होती। उनके अजम व अस्तकामत या हौसला व जुर्रत पर कोई हर्फ आ सके। अगर इन्हे अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसका एतराफ करने में भी उन्हे किसी हील व हुज्जत का सहारा लेने की जरूरत महसूस नही हुई। बहर तौर हजरत अली रजि0 ने इन्सानियत आदमियत के एहतेराम को भी मलहूज रखा और शरीअत इस्लामिया की किसी भी तालीम पर कोई अदना आंच भी नही आने दी। तारीख इस्लामी का मुताला के मुताला करने वाले को इस हकीकत का अदराक पूरी तरह हो जाता है कि उनकी जिन्दगी में बहुत से वह मसाएल भी पेश आये जा मनाफती की साजिशो और यहूदियों की मक्कारियों का नतीजा है हजरत अली रजि0 को यह इमतियाज हासिल है कि उम्मत के तमाम तबकात ने उनकी खलाफत को बिल इत्तेफाक तसलीम किया ताहम अहले सुन्नत व अलजमाअत हजरत अली रजि0 से गायत मोहब्बत व अकीदत के बावजूद उन्हे इन्सानी जमाअत का हिस्सा मानते है जिसकी सआदत करामत, फरासत, व अमानत, सदाकत, व दियानत, तकवा तहारत, नजाबत व शराफत में कोई बात करना मुसलमान की महरूमी है 13 रजबुल मुरज्जब हजरत अली रजि0 का यौमे पैदाईश है उस दिन हम सबकों अहेद करना चाहिए कि हम एतेहाद उम्मत का मुजाहिरा करते हुए कम अज कम उन दिले फरामोश तब्सिरों से अपने कलम व जबान को पाक रखें जो उम्मत के एक बड़े तब्के की दिल आजारी का सबब बनते है अकीदते अली हुब्बे रजि0 में जब अली का मुजाहिरा करना हमारे लिए लाजमी है लेकिन किसी दूसरे की तकलीफ व दिल आजारी उस मोहब्बत का तकाजा नही अगर हम हजरत अली रजि0 की जिन्दगी को अपने मशगले राह बना लें तो उम्मत के मसाएल का हल आसानी के साथ निकल सकता है।