लखनऊ:
इमामबाड़ा गुफ़रान मआब में मुहर्रम की तीसरी मजलिस को ख़िताब करते हुए मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने अज़ादारी के महत्व और इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अज़ादारी शरीअत के ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि अल्लाह की सुन्नत, अम्बिया की सुन्नत और मुहम्मद और आले मुहम्मद (स.अ.व) की सुन्नत है, इसके लिए मुसलमानों को निष्पक्षता से इस्लाम के इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। अज़ादारी अल्लाह की निशानियों में शामिल हैं, इसलिए इसका सम्मान सब पर अनिवार्य है। मौलाना ने कहा कि शहादत एक बड़ा सम्मान है जो हर किसी को नसीब नहीं होता। हज़रत इब्राहिम (अ.स) ने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे इस्माईल को क़ुर्बान करना चाहा, लेकिन उनकी जगह पर दुम्बा क़ुर्बान हो गया। इस्माईल शहादत से बच गए, लेकिन अल्लाह ने क़ुरान में इसे ‘अज़ीम क़ुरबानी’ के रूप में वर्णित किया। आज भी मुसलमान इस क़ुरबानी की याद में ईद-उल-अज़हा माना रहे हैं लेकिन अफ़सोस रसूले ख़ुदा (स.अ.व) के बेटे हज़रत इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत की याद मानाने को इस्लाम के ख़िलाफ़ समझते हैं। जबकि ये शहादत ख़्वाबे इब्राहीम की ताबीर है। मजलिस के आख़िर में मौलाना ने हज़रत जौन (अ.स) की शहादत को बयान किया जिस पर मोमनीन खूब रोए।