• भगवान दास

डा. बाबा साहेब अम्बेडकर बम्बई में शुरू से ही मजदूर आन्दोलन से जुड़े हुए थे. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना 1936 में की गयी. बाबा साहेब ने उसके संविधान में मज़दूर वर्ग के संगठन और उत्थान के लिए प्रावधान किये थे.

एक बड़ा कार्य जो उन्होंने किया, वह मजदूर वर्ग के लिए प्रगतिशील कानून बनाने का था. फैक्ट्री एक्ट, ट्रेड यूनियन एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, एम्प्लाइज इन्शुरैंस एक्ट आदि कानून उनके द्वारा 1943-46 में बनाये गए. वह इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन की सिफारिशों पर बहुत दृढ़ता से अमल करवाने की कोशिश करते थे. जो अधिकार एवं सुविधाएँ अन्य देशों में बहुत मुश्किल से मजदूरों ने प्राप्त कीं वे बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपने श्रम मंत्री काल में कानून बना कर मजदूरों को प्रदान कर दीं.

दूसरा बड़ा काम जो उन्होंने किया वह महिलाओं को खानों की निचली तहों में काम करने पर रोक लगाने का था. ब्रिटिश सरकार यह कानून लागू नहीं करना चाहती थी, क्योंकि उन्हें डर था कि इस से खानों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा.

लार्ड वेवल ने मजबूर होकर सेक्रेटरी आफ स्टेट को लिखा और शिकायत की कि लेबर मिनिस्टर डॉ. आंबेडकर इस दिशा में बहुत दबाव डाल रहा है. आखिर यह कानून बना और महिलाओं को खानों की निचली सतहों पर लगाना बंद हुआ.

उनका कहना था-

“मजदूरों! केवल कानूनी अधिकारों या सुविधायों के लिए नहीं सत्ता के लिए संघर्ष करो.”

बाबा साहेब आंबेडकर स्वयं एक लेबर लीडर रह चुके थे. अधिकतर अछूत ही खेत, कारखानों, मिलों आदि में छोटे दर्जे के मजदूर थे. बाबा साहेब ने अपने संघर्ष के दौरान इन्हीं मजदूर बस्तियों में जीवन गुज़ारा था. वह उनकी समस्यायों तथा पीड़ा को भी भली भांति समझते थे. पर श्रमिकों, मजदूरों आदि से वह कहते थे-

” इतना ही काफी नहीं कि तुम अच्छे वेतन और नौकरी के लिए, अच्छी सुविधाओं तथा बोनस प्राप्त करने तक ही संघर्ष को सीमित रखो. तुम्हें सत्ता छीन लेने के लिए भी संघर्ष करना चाहिए.”

अतः यह निस्संकोच कहा जा सकता है बाबा साहेब ही भारतीय मजदूरों के सब से बड़े हितैषी तथा अधिकार दिलाने वाले थे जिस के लिए वे सदैव बाबा साहेब के ऋणी रहेंगे. “

श्री भगवान दास जी की पुस्तक ” बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर : एक परिचय- एक सन्देश” से उद्दृत