रिपोर्ट-रमेश चन्द्र गुप्ता

भारत-नेपाल के बीच रोटी-बेटी के ही संबंध नही बल्कि धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संबंध भी प्राचीन काल से रहे हैं। कोरोना महामारी को लेकर दोनों देशों की सरकारों ने गत 24 मार्च 2020 को अपनी-अपनी सीमाएं सील कर दी थी। जिसके करीब 18 माह बाद दोनों देशों के बीच आवागमन शुरू किये जाने से दोनो देशो के सीमावर्ती बाशिन्दो मे खुशी की लहर दौड़ गई।

इन बीते 18 माह में दोनों देशों के नागरिकों को भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। नागरिकों के साथ ज्यादतियां भी हुई। दूल्हा-दुल्हन तक को 4-5 लोगो के साथ पैदल यात्रा करनी पड़ी। कई बार तो सुरक्षा कर्मियों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी। मानवीय संवेदनाएं तार तार हो गयी थी। अंतिम संस्कार में भी भारतीय क्षेत्र से रिश्तेदार ऑफ फ्रूट होकर छिप कर गए।

इस बीच रुपईडीहा से होकर पेट्रोलियम पदार्थ, खाद्यान, कपड़े, बाइक, ट्रैक्टर व मशीनरी पार्ट्स भारत सरकार की व्यापारिक विदेश नीति के तहत नेपाल सप्लाई होते रहे और भारतीय क्षेत्र से मालवाही ट्रकों के चालक व खलासी बे रोक टोक आते जाते रहे। इनका किसी प्रकार का स्वास्थ्य परीक्षण न तो भारतीय क्षेत्र में हुआ न नेपाल में। रुपईडीहा के पूरब व पश्चिम खुली सीमा का लाभ उठाते हुए तस्कर सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद भारत-नेपाल के बीच आते जाते रहे।

दोनो देशो के अफसरो ने की बैठक
नेपाल के आर्म्ड पुलिस फोर्स के इंस्पेक्टर जीवन लाल बुढ़ा, नवनियुक्त क्षेत्रीय पुलिस कार्यालय के इंचार्ज मीन बहादुर विष्ट, एसएसबी के डिप्टी कमांडेंट प्रवीण यादव व सहायक कमांडेंट अनिल यादव के साथ सीमा खोलने पर आने वाली जटिलताओं पर विचार विमर्श हुआ। इस संबंध में इंचार्ज मीन बहादुर विष्ट ने बताया कि एसएसबी के अधिकारियों के अनुसार अभी कोई लिखित आदेश प्राप्त नही हुआ है, परंतु सीमा खोल दी गयी है।