समाजवाद के योद्धा उम्मीद अभी ज़िन्दा है किताब के नायक सैय्यद सगीर अहमद साहब के इंतकाल की खबर सोशलिस्टों के लिए दुख का पहाड़ तोड़ गया, प्रजा ‘सोशलिस्ट पार्टी’ से अपना राजनितिक सफ़र शुरू करने वाले सग़ीर साहब बदायूं ज़िले के सहसवान कस्बे में ज़मीदार खानदान में 04 दिसम्बर 1934 को पैदा हुए थे मुक़ामी तालीम बदायूं से ही हासिल कर आला तालीम के लिए ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ गये। उन दिनों आचार्य नरेन्द्र देव, डाॅ लोहिया, जयप्रकाश नारायण का छात्रों के बीच काफ़ी दख़ल था। सग़ीर साहब भी उससे अछूते न रह सके तालीम के दिनों से ही सोशलिस्टों की जो संगत शुरू की उसी विचारधारा पर अपनी ज़िन्दगी के आखिरी लमहे तक कायम रहे, लम्बे जीवन काल में एक बार सन् 1964 में जब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में बिखराव हुआ और पार्टी के लोगों को मायूसी का सामना करना पड़ा तो नतीजतन अशोक मेहता, चन्द्रशेखर, गेंधा सिंह, बंसत साठे, नारायण दत्त तिवारी इत्यादि के साथ आपने भी कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली, यहीं से आपका साथ चन्द्रशेखर जी का ऐसा हुआ कि सगीर साहब सोशलिस्ट कम चन्द्रशेखरवादी ज्यादा हो गये।

सन् 1983 में गंगा प्रसाद मेमोरियल हाॅल अमीनाबाद लखनऊ में उत्तर प्रदेश जनता पार्टी के अल्पसंख्यक सम्मेलन में मैं श्री लोकबन्धु राजनारायण के साथ पहुंचा तो वहां पहले से मौजूद माननीय चन्द्रशेखर, कामण्डर अर्जुन सिंह भदोरिया, बाबू बनारसी दास, सुरेन्द्र मोहन जी, यशवंत सिंन्हा, डाॅ सैय्यद शहाबुद्दीन व कैप्टन अब्बास अली तो मंच पर पहले से मौजूद थे ही के अलावा मंच पर एक खूबसूरत चेहरा खूबसूरत शेरवानी नज़ाकती अंदाज़ लम्बे कद के जिस आदमी को मैंने पहली बार देखा वो सग़ीर साहब ही थे।

सग़ीर साहब के शख्सीयत का एक पहलू यह भी था कि वो अपने आप में बहुत ही खुद्दार थे अपने आत्मसम्मान के साथ किसी तरह के समझौते के कायल नहीं थे। यही वजह है कि इतने लम्बे राजनीतिक जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ पाये। सग़ीर साहब ने समाजवाद को न केवल एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में स्वीकार किया बल्कि आचरण में भी ज़िन्दगी भर समाजवादी रहे जो कि उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी। उन्होंने समाज से कुछ लिया नहीं बल्कि कुछ-न-कुछ दिया ही है।

ऋद्धांजलि सभा की अध्यक्षता ‘‘लोकबन्धु राजनारायण के लोग’’ ट्रस्ट के अध्यक्ष सैय्यद शाहनवाज़ अहमद क़ादरी ने की। ऋद्धांजलि सभा में राजनाथ शर्मा, लोकतंत्र सेनानी, वरिष्ठ पत्रकार एवं सग़ीर साहब पर लिखी गयी किताब उम्मीद अभी ज़िंदा है के लेखक धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, ‘‘लोकनायक जयप्रकाश नारायण ट्रस्ट’’ के अध्यक्ष अनिल त्रिपाठी, पाठेश्वरी प्रसाद, क़िफायतुल्लाह खान नदवी, मोहम्मद परवेज अंसारी, फर्रूख हसन ने नम आंखों से सग़ीर साहब को अलविदा कहा।