नई दिल्ली: 2019 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मिलने का फैसला किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की पहल पर बुधवार (11 जुलाई) को नई दिल्ली में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ राहुल गांधी राउंड टेबल डिस्कशन करने वाले हैं। सूत्रों के मुताबिक इसमें मुस्लिम समुदाय के प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, बॉलीवुड से जुड़े लोग और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे। हालांकि, कौन-कौन इसमें शामिल होगा, इसकी लिस्ट काफी गोपनीय रखी गई है। पर माना जा रहा है कि जावेद अख्तर और सैयदा हमीद जैसे करीब 20 लोग इस बैठक में शामिल होंगे। मोदी सरकार के कामकाज और भाजपाई मंत्रियों के हालिया आचरण से उपजे असंतोष के बाद यह बैठक अहम हो गई है। बता दें कि केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के खिलाफ 42 पूर्व नौकरशाहों ने मोर्चा खोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन्हें पद से हटाने की मांग की है। इनमें से अधिकांश नौकरशाह अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी न केवल मुस्लिम समुदाय की परेशानियों से रू-बरू होंगे बल्कि इस समुदाय के बीच कैसे फिर से कांग्रेस के प्रति लगाव पैदा किया जाए, इस पर भी चर्चा होगी। बता दें कि 2014 के आम चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने एंटनी कमेटी बनाई थी, जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस अति अल्पसंख्यकवाद की वजह से हारी है। इसके बाद कांग्रेस ने धीरे-धीरे मुस्लिमों से दूरी बनाते हुए सॉफ्ट हिन्दुत्व की राजनीति शुरू कर दी। गुजरात और कर्नाटक विधान सभा चुनावों के वक्त राहुल गांधी न केवल जनेऊधारी हिन्दू बने नजर आए बल्कि मंदिरों और मठों में माथा टेकते भी नजर आए। राहुल गांधी भगवान शिव के उपासक भी बनते नजर आए लेकिन अब चूंकि बात आम चुनाव की है, ऐसे में मुस्लिम समुदाय को साथ लिए बिना कांग्रेस की खिचड़ी पकनी मुश्किल होगी। लिहाजा, कांग्रेस ने पिछले महीने रोजा इफ्तार का आयोजन कर इस बात के संकेत दे दिए थे कि राहुल गांधी फिर से मुस्लिम समुदाय का विश्वास हासिल करना चाहते हैं साथ ही उन्हें यह विश्वास भी दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस उनके हक की लड़ाई लड़ती रहेगी।

दरअसल, पारंपरिक तौर पर मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का ही वोटर रहा है लेकिन साल 1992 में हुए बाबरी विध्वंस के बाद मुस्लिम वोटरों की न केवल कांग्रेस से दूरी बनी बल्कि धीरे-धीरे उनका विश्वास उनसे उठता गया। इसी दौर में मंडल-कमंडल की राजनीति की वजह से मुस्लिम समुदाय अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग क्षेत्रीय दलों से चिपक गया। मसलन, बिहार में जनता दल (अब खासकर राजद, जदयू और लोजपा), यूपी में सपा और बसपा, कर्नाटक में जेडीएस, आंध्र प्रदेश में टीडीपी, तेलंगाना में टीआरएस, पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ मुस्लिम समुदाय जुड़ गया। जहां कोई प्रभावशाली क्षेत्रीय दल नहीं थे वहां मुस्लिम समुदाय खुद को कांग्रेस से जोड़े रखा। कांग्रेस की कोशिश है कि राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम फिर से कांग्रेस से जुड़े। हालांकि, यह राह आसान नहीं है।