लखनऊ: हजरत अली अलैहिस्सलाम के एलान-ए-विलायत की याद में मनाए जानें वाले ‘ईद-ए-गदीर’ की शब में शहर में जगह-जगह महफिलों का आयोजन किया गया। इमामबाड़ों और रौजों में जश्ने मौलाए-ए-कायनात मनाया गया। वहीं रौजा-ए-काजमैन में गदीर अकादमी की ओर से होने वाली ऑल इंडिया महफिले मकासिदा में देश भर से आए शोआरा ने बारगाहे मौला में अशहरा पेश किए।

इससे पहले मुजफ्फरनगर से आए मौलाना मोहम्मद हुसैनी ने कहा कि करीब 15 सौ साल पहले गदीर के मैदान में पैगंबर मोहम्मद साहब ने जो पैगाम दिया था, अगर आलमे इस्लाम उसपर अमल करता तो आज आईएस का वजूद न होता। यही नहीं, दहशतगर्दी आज पूरी इंसानियत के लिए नासूर बनी हुई है। मोहम्मद साहब ने गदीर में सिर्फ जानशीन का ऐलान नहीं किया था, बल्कि मोहब्बत और हिदायत का पैगाम दिया था, जिसे दुनिया ने भुला दिया और आज मुसलमानों की यह दुर्दशा है।

आयतुल्लाह मौलाना हमीदुल हसन ने कहा कि बर्मा में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर सभी को बोलना चाहिए, यह किसी एक कौम पर बर्बरियत नहीं है बल्कि पूरी मानवता पर अत्याचार है। नाजमिया अरबी कॉलेज के प्रधानाचार्य मौलाना फरीदुल हसन की अध्यक्षता में महफिल आगे बढ़ी। वहीं देशभर से आए शोआरा में फखरी मेरठी, बेताब हल्लौरी, नसीराबाद के खादिम शब्बीर वकार सुल्तानपुरी, फ़रहान बनारसी और मुनव्वर जलालपुरी के अलावा स्थानीय शायरों में जर्रार अकबराबादी, नय्यर मजीदी, हादी रजा हादी, मुख़्तार लखनवी, तय्यब काजमी, अंसर अबकाती, जकी भारती, फरीद मुस्तफा, शान लखनवी, हैदर रजा, अंजुम गदीरी, आरिफ अकबराबादी, अली अब्बास जै़दपुरी, मोहम्मद व अली मूसा खि़राजे अकीदत पेश की। जश्न का संचालन क़िरतास करबलाई ने किया।