नदवतुल उलमा में दो दिवसीय शरियत सेमिनार शुरू

इस्लाम एक कयामत तक मार्ग दर्शन करना वाला मजहब है, बदलते हालात में नए मुद्दे व समस्याएं सामने आती हैं। जिनका समाधान करना उलामा ,विद्वानों की ज़िम्मेदारी है। इस सिलसिले में उलमा की कोशिश बहुत अहम और मूल्यवान हैं। यह बातें नदवातुल उलमा के प्रमुख मौलाना सैय्यद बिलाल अब्दुल हय हसनी नदवी ने नदवा में इस्लामी शरिया (कानून) अनुसंधान परिषद के तहत दो दिवसीय सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि मज़हब की सही व्याख्या करना विद्वानों की ज़िम्मेदारी है। इसके लिए इल्म में गहराई के साथ-साथ विचारों में व्यापकता भी ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अल्लाह पाक ने मज़हब को आसान बनाया है। आधुनिक मुद्दों का समाधान करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह लोगों के लिए आसान हो।

इस राष्ट्रीय सेमिनार में ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि अल्लाह के रसूल (सल्ल 0) अंतिम नबी थे। नबूवत पूरी होने के फलस्वरूप इस उम्मत पर तीन ज़िम्मेदारियाँ आती हैंः (1) दावत और प्रचार; (2) यदि दीन में किसी तरह की रूकावट पैदा करने की कोशिश की जाए तो उसे दूर करना और हर तरह के शक व संदेह को दूर करना; (3) नई समस्याओं का दीन की रोषनी में समाधान पेश करना और उसके लिए आपस में बैठकर सलाह मशविरा से एक मत पेश करना। यह सामूहिक एकजुटता बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि यह नई समस्याओं का युग है, राजनीतिक परिस्थितियाँ बहुत बदल गई हैं, जिन पर विचार करना विद्वानों की ज़िम्मेदारी है। इस काम में नदवा की मजलिस तहकीकात शरईया का काम बहुत सराहनीय हैं। नदवा के महासचिव मौलाना अम्मार अब्दुल अली हसनी नदवी ने स्वागत भाषण पेश करते हुए कहा कि यह मौलाना अली मियाँ की एक बड़ी उपलब्धि है। दारुल उलूम नदवात उलेमा के वरिष्ठ शिक्षक मौलाना ज़कारिया संभली ने कहा कि इस्लाम कुरान और हदीस पर आधारित है। हमें कुरान और हदीस से उन रत्नों को निकालना होगा जो नई समस्याओं के समाधान में रौशनी प्रदान करते हैं। हमें कामयाबी के लिए अपने जीवन में शरीयत के सिद्धांतों को लागू करना होगा। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम अल्लाह की नज़र में गुनाहगार होंगे।

मजलिस के सचिव मौलाना अतीक अहमद बस्तवी ने अपने कहा कि नई समस्याओं पर मार्गदर्शन का काम बहुत ही नाजुक और बेहद ज़िम्मेदारी वाला है। यह काम केवल वही विद्वान कर सकते हैं जो समय की नब्ज़ के साथ-साथ शरीयत पर गहरी नज़र रखते हों। उन्होंने कहा कि सहाबा (रज़ी) के दौर में सामूहिक विचार-विमर्श आम बात थी और वे आपसी सलाह-मशविरे से समस्याओं का समाधान करते थे। आज कई संस्थाएँ इस के लिए काम कर रही हैं और अच्छी बात यह है कि उनके बीच आपसी जुड़ाव और सहयोग है। उन्होंने कहा कि बदलते हालात में वक्फ की समस्याओं का समाधान करना विद्वानों की ज़िम्मेदारी है।
उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए मौलाना मुहम्मद नसरुल्लाह नदवी ने मजलिस के मकसदों पर रोशनी डाली। मौलाना मुनव्वर सुल्तान नदवी ने मजलिस की एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की।

इस मौके पर मजलिस द्वारा प्रकाशित लेखों के तीन संग्रहों (1) पशुओं के कृत्रिम प्रजनन पर शरई नियम (2) गैर हाज़िर वस्तुओं की बिक्री के आधुनिक रूप (3) यासर तैसर और वर्तमान युग की आवश्यकताएँ) का लोकार्पण हुआ, साथ ही मजलिस द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका (तहक़ीक़त शरिया) के ताजा अंक का भी लोकार्पण हुआ।

सेमिनार की शुरुआत डॉ. मुहम्मद अली नदवी के कुरआन की तिलावत से की। ज़ैद नसीम और उनके साथियों ने नदवा का गीत पेश किया।

इस मौके पर खास तौर से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के महासचिव मौलाना फ़ज़लुर्रहीम मुजद्दिदी, दारुल उलूम वक्फ देवबंद के प्रधानाचार्य मौलाना सुफ़ियान कासमी, दारुल उलूम नदवत उलेमा के उप प्रधानाचार्य मौलाना अब्दुल अज़ीज़ , नदवत उलेमा के उस्ताद मौलाना नियाज़ अहमद नदवी, अरबी विभाग के अध्यक्ष मौलाना अलाउद्दीन नदवी, ईदगाह लखनऊ के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, मौलाना उमैर अलसिद्दीक, मौलाना ज़िया अब्दुल्ला नदवी और रामपुर से सांसद मौलाना मुहिबुल्लाह नदवी सहित देश भर से विद्वान उपस्थित थे। आखिर मुफ़्ती ज़फ़र आलम नदवी ने किया।