एमएसएमई उद्योगों को प्रोत्साहन दे सरकार: एआईपीएफ
राष्ट्रीय अधिवेशन की आगरा में तैयारियां शुरू, व्यापक जनसंपर्क और संवाद हुआ
आगरा
अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने के बाद देश के छोटे, मझोले सूक्ष्म उद्योगों के सामने अस्तित्व का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। चमड़ा, हस्तशिल्प, स्टोन शिल्प, जरदोजी, दरी, कांच, चूडी आदि एमएसएमई उद्योगों के प्रमुख केंद्र आगरा क्षेत्र की यह सारी इंडस्ट्रीज संकटग्रस्त हो रहीं है। निर्यात में बाधा से हो रही उद्योगों की बंदी से इस क्षेत्र में लगे लाखों लोगों का रोजगार छीनने का खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में सरकार को एमएसएमई उद्योग के लिए विशेष आर्थिक प्रोत्साहन देना चाहिए, अमेरिकी टैरिफ के कारण हो रहे नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए तकनीकी विकास और बाजार उपलब्धता में मदद करनी चाहिए और रोजगार छिनने से बेकार हुए मजदूरों को बेकारी भत्ता देना चाहिए। यह मांग ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट द्वारा उठाई गई।
एआईपीएफ के जिला संयोजक डॉक्टर देवेंद्र सिंह ने बताया कि दल का राष्ट्रीय अधिवेशन 7-8 दिसंबर को दिल्ली के सुरजीत भवन में आयोजित किया जा रहा है। जिसकी तैयारियां आगरा में शुरू कर दी गई है। इसके प्रचार के लिए टीम ने कचहरी में अधिवक्ताओं, आगरा कालेज के अध्यापकों, गणमान्य नागरिकों और कर्मचारी संगठनों के साथ संवाद किया है। जगदीशपुरा, ट्रांस यमुना, कुबेरपुर आदि जगह आयोजित संवाद में लोगों का यह कहना है कि एआईपीएफ सम्मेलन में उठाए गए मुद्दे संविधान के रक्षा, आजीविका और सामाजिक अधिकार, समावेशी राष्ट्रवाद और जन लोकतंत्र आज के दौर के सबसे प्रमुख सवाल है। इनके हल से ही देश की आर्थिक प्रगति हो सकती है और लोगों के गरिमापूर्ण जीवन को सुनिश्चित किया जा सकता है। यह आम राय रही कि अमेरिका और यूरोप के ऊपर निर्भर न होकर आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का निर्माण राष्ट्र की प्रगति के लिए जरूरी है।
उन्होंने बताया कि संवाद में देश के 200 कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगाकर संसाधन जुटाने की बात उठी। कहा गया कि इससे प्राप्त धनराशि से हर नागरिक के रोजगार, शिक्षा-स्वास्थ्य, भोजन के अधिकार और सम्मानजनक पेंशन के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकता है।
बताया कि संवाद में यह बात भी उठी कि 2017 में बनी रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखा जाए ताकि अति पिछड़ा वर्ग के सामाजिक अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके। पहचान आधारित भेदभाव के शिकार पहचान अधारित पांच समूह दलित आदिवासी, अति पिछड़ा वर्ग, पसमांदा मुसलमान और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण और वाजिब प्रतिनिधित्व की गारंटी की जानी चाहिए। मांग उठी कि न्यायपालिका, मीडिया, निजी क्षेत्र समेत सभी सरकारी प्रतिष्ठानों में इन समूहों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाना चाहिए।








