ज़ीनत शम्स

सत्ता को पाना टेढ़ा काम होता है और सत्ता को बचाना उससे टेढ़ा काम. उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल है, पहले चरण के मतदान में कुछ ही समय शेष रह गया है, नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, सारे पत्ते खुलकर सामने आ चुके हैं कि कौन कहाँ किसको टक्कर दे रहा है. मुकाबला आमने सामने का है या तीन तरफ़ा या फिर बहुकोणीय। रूठने मनाने और चरण वंदना का दौर शुरू हो चूका है. चार, साढ़े चार साल तक जिनकी कभी याद नहीं आती उनके आगे बड़े बड़े सूरमाओं को गिड़गिड़ाना पड़ रहा है. कुछ ऐसा ही नज़ारा आज दिल्ली में भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के घर पर भी नज़र आया. मौक़ा था सामाजिक भाईचारा बैठक का, यह अलग बात है कि इस बैठक में सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय के 250 बाअसर लोगों को ही बुलाया गया था और बुलाया था राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने.

अब जो खबरे आ रही हैं उनके हिसाब से बैठक में खूब मान मनव्वल की बातें हुईं, खूब इमोशनल कार्ड खेला गया. जाट समुदाय भाजपा का सॉलिड वोट बैंक है, मगर इस बार थोड़ा नाराज़ है, किसान आंदोलन के साथ नाराज़गी के और भी कई कारण हैं. जाट ज़िद के पक्के होते हैं लेकिन भावुक भी. अमित शाह ने इस बैठक में अपने तरकश के सारे तीर चला दिए. उन्होंने जाट नेताओं को घर और बाहर का अंतर भी समझाया, पुराने रिश्तों की याद दिलाई और मिन्नतें भी कीं.

अमित शाह ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए जाट समुदाय के साथ 650 साल पुराना रिश्ता बताते हुए कहा कि आपने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, हम भी लड़ रहे हैं। जाट भी किसानों के लिए सोचते हैं और हम भी। जाट देश की सुरक्षा के लिए सोचते हैं और बीजेपी भी। अमित शाह ने कहा कि अगर कोई शिकायत है तो वह उनसे झगड़ा कर सकते हैं, डांट सकते हैं. यह घर की बात है बाहर वाला क्यों फायदा उठाये।

अमित शहत ने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत रालोद के लिए दरवाज़े खुले रखने का पासा भी फेंका। भाजपा के चाणक्य की यह एक ऐसी सोच समझकर चली गयी चाल है जो चुनाव बाद काफी काम आ सकती है वरना 2024 के लिए तो राह खुली ही रहेगी। हालाँकि रालोद प्रमुख ने भाजपा के ऑफर का जवाब बहुत तीखा दिया है, जयंत चौधरी ने कहा कि न्योता मुझे नहीं, उन 700 से ज़्यादा किसान परिवारों को दो जिनके घर आपने उजाड़ दिए!! अब जवाब तो यह ऐसा है कि सामने वाला शर्म के मारे डूब मरे लेकिन राजनीति में डूबना नहीं डुबोना सिखाया जाता है.

अब अमित शाह का जाट समुदाय पर खेला गया यह इमोशनल कार्ड एकबार फिर काम आएगा या नहीं, यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा लेकिन शाह जी आसानी से हार मानने वाले नहीं । अभी अच्छा खासा समय है पहले चरण के चुनाव में, तब तक जाटों को साधने की कोशिशें जारी रहेंगी क्योंकि सत्ता वापसी के लिए पश्चिमी यूपी भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और पश्चिमी यूपी को जीतना है तो जाटों को जीतना ज़रूरी है.