ख़ूने अबूतालिब की क्या शान निराली है,इस्लाम बचाने को यह काम सदा आया। आज मुहर्रम की छठवीं तारीख़ हैं। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे हैं करबला का वह ख़ूनी मंज़र दिलो दिमाग