नवेद शिकोह जब हर दवा बेअसर होने लगे और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा हो तब बाईपास सर्जरी का रिस्क उठाया जाता है। इसे बहादुरी भी कह सकते हैं और मजबूरी भी।