बी0डी0 सक्सेना

भारतवर्ष एक प्रजातंत्र देश है और यहां की जनता द्वारा चुनें हुए समाजसेवियों द्वारा देश का शासन संविधान में दी गईं व्यवस्थाओं के आधार पर चलाया जाता है। परन्तु अब पिछले कुछ वर्षो से यह समाज सेवा न रहकर एक व्यवसाय का रूप ले लिया हैं जनता जिसे चुनकर भेजती है उसमें अधिकांश ऐसे लोग आ जाते हैं जो जनता को मूर्ख बनाकर जितनी उनकी क्षमता है उससे कहीं अधिक जनता का पैसा लूटकर रातों-रात बडे़ बड़े राजशाही हो जाते हैं। उनके कुछ उदाहरण हैं श्री मुलायम सिंह, श्री अखिलेश यादव, श्री लालू प्रसाद यादव, सुश्री मायावती आदि जो समाज सेवक से पहले जिनकी आर्थिक स्थिति क्या थी और आज क्या है। यह लोग स्वयं ही नहीं अपने परिवार को भी इसमें सम्मिलित कर लेते हैं और चाचा भतीजे, बेटा-बहू, पत्नी को भी इस व्यवसाय में किसी न किसी रूप में सम्मिलित कर लेते हैं। यह चुने हुए मंत्रीगण सदस्य आदि अपना वेतन भी सभी मिलकर बढ़ा लेते हैं, जितनी अधिक से अधिक सुविधाएं स्वीकृत कर सकते हैं ले लेते हैं, यही नहीं जब पद से हट जाते हैं तो पेंशन भी लेते हैं और अनेक सुविधाएं भी। धन कहां से आता है, गरीब और मध्यवर्गीय प्रजा के टैक्स से। यह लोग अपनी आय पर टैक्स भी नहीं देते हैं और अपने हितों के अनुरूप सब मिलकर नियम बना लेते हैं।

भारतवर्ष में धन की कमी नहीं है इन लुटेरों और भ्रष्ट कमचारियों के यदि ऑंकड़ो को देखा जाए तो इससे पूरे भारतवर्ष की गरीबी दूर हो सकती है लेकिन यह गरीबी दूर करना ही नहीं चाहते हैं क्योकि गरीबों को तो निर्वाचन के दिनों में मुफ्त घुमाने, भोजन देने, थोडे़ पैसे का लालच आदि देकर केवल वोट ले लेते हैं और फिर बाद में उन्हीं को मूर्ख बनाते हैं।

जिसकी लाठी उसी की भैंस। जनता उन्हें चुनकर भेजती है। असेम्बली के समय सब नहीं पहॅुचते हैं फिर भी पूरे माह का वेतन और भत्ते लेते हैं। असेम्बली में अनपढ़ो की तरह शोर-शराबा और तोड़-फोड़ करते हैं। जो नुकसान होता है उसकी भरपाई तो गरीब जनता के टैक्स से होती है। करोड़ो रूपयों का बिजली का भुगतान नहीं करते हैं जिसके कारण बिजली की दरें प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है और भार मध्यवर्गीय जनता पर पड़ता है। नियम है कि जिस माह के बिजली बिल का भुगतान नहीं होगा कनेक्शन काट दिया जायेगा परन्तु इन लोगों के न कनेक्शन कटते हैं और न वर्षों बिजली के बिलों का भुगतान होता है। जब बिजली उत्पादन में व्यय बढ़ता है उसकी भरपाई मध्यवर्गीय जनता से बिजली की दरों को बढ़ाकर पूरा किया जाता है यदि बडे़ बकाया दारों से समय पर भुगतान मिलता रहे तो दरों के बढ़ाने की आवश्यकता न पडे़।

अधिकारियों मंत्रियों न्यायधीशों और मुख्यमंत्रियों आदि के आवासों का एक मानक निर्धारित होता है कि उन्हें कितना बड़ा भवन और उसकी साज सज्जा पर कितना व्यय होगा। परन्तु इसमें भी लूट होती हैं। कई भवनों को मिलाकर अपने लिए बड़ा भवन बना लेते हैं और नियम बना लेते हैं कि पद छोड़ने के बाद आवास नहीं छोडे़गें और यही नहीं जनता के पैसे से उस भवन को सभी सुख सुविधाओं से पूरा कर लेंगें। सुश्री मायावती जब मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने कई भवनों को सम्मिलित करके अपने लिए आवास आवंटितकर लिया और उसको एक नये महल का रूप दे दिया जबकि वह अपने को गरीबों और पिछड़ी जातियों का मसीहा समझती हैं। इतने धन से वे गरीबों के लिए आवास बनवा सकती थीं। अपने शासनकाल में उनकी वित्तीय स्थिति कहां से कहां पहुॅंच गई। यह उनके रहन सहन से ही पता चलता है। यदि वह वास्तव में पिछड़ी जाति और गरीबों की मसीहा होतीं तो उनके लिए बहुत कुछ कर सकती थीं। केवल बातों से गरीब का पेट नहीं भरता है, उसे रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए होता है। इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है।

भारतवर्ष में अधिक प्रगति हो रही है जो धनवान है वह दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है परन्तु जो 80 प्रप्रतिशत जनता गरीब और किसान हैं जो अपना नेता चुनकर भेजते हैं वह वहीं का वहीं है। उसे केवल निर्वाचन के दिनों में तो कुछ चारा डालकर उसे झूठा आश्वासन देकर फंसा लेते हैं और फिर उनकी लूट प्रारम्भ हो जाती है। निर्वाचन के पूर्व उसकी क्या स्थिति थी और निर्वाचन के बाद उसकी स्थिति क्या हो गई इसकी कोई जॉच करने वाला नहीं है। वर्तमान सरकार इस डर से कुछ नहीं करती कि जब उनकी सरकार हो जाएगी तो उन्हें भी इसी प्रक्रिया से गुजरना होगा।

अगर यह नेतागण जो दिन प्रति दिन धन इकट्ठा करने में लगे है जिसकी कोई सीमा नहीं है, सभी निश्चित कर लें तो भारत का किसान भी शीघ्र एक खुशहाल और सम्मानजनक जिंदगी जी सकता है। अब समय आ गया है जब आत्मचिंतन की कठोर आवश्यकता है और जा मध्यवर्गीय तथा गरीब हैं उस पर अधिक ध्यान दिया जाए। अब वोट की राजनीति छोड़कर जन कल्याण पर अधिक ध्यान दिया जाए।

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