शिवपाल सिंह यादव

हम सभी के लिए हर्ष का विषय है कि समाजवाद के प्रतिबद्ध सेनानी और संघर्षमूर्ति जार्ज फर्नांडीज आज 88वें वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे। राजनीति, पत्रकारिता, समाजवादी विचारधारा और मजदूर आंदोलन के दृष्टिकोण से जार्ज साहब का योगदान बहुआयामी, बहुस्तरीय और बहुमूल्य है। वे उन बड़े नेताओं में अग्रणी हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय राजनीति की प्रखरता एवं जनसंघर्षों की परंपरा को आगे बढ़ाया और स्तुत्य नायक बने।

जहां तक मुझे याद है, साठ-सत्तर के दशक में उनका नाम रचनात्मक संघर्ष के पर्याय व प्रतिनिधि के रूप में जाना जाता था। वे मजदूरों की सबसे बुलंद और किसी के भी आगे कभी मंद न पड़ने वाली आवाज बन चुके थे। हम लोगों के लिए जार्ज साहब प्रारंभ से प्रेरणा के केन्द्र रहे हैं। मुझे उन्हें कई बार सुनने और तलैया तथा इटावा में उनकी सभा कराने का सौभाग्य मिला है। वे अपने आप में सादगी और ज्ञान की आदमकद प्रतिमा हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि लोकजीवन में इतना संघर्ष करने वाला यायावर व्यक्ति इतना विद्वान कैसे हो सकता है। नई पीढ़ी के राजनीतिक कार्यकर्ताओं विशेषकर समाजवादियों को जार्ज साहब से लोकजीवन जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए। उनका जन्म 3 जून, 1930 को मंगलूर में जॉन जोसफ फर्नांडीज और एलिस मार्था के के पुत्र के रूप में हुआ। उनकी मां मार्था जार्ज पंचम से प्रभावित थीं, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम जार्ज रख दिया। पिता जोसेफ उन्हें पादरी बनवाना चाहते थे, बंगलुरु में धार्मिक शिक्षा भी दिलवाई, किंतु जार्ज साहब उसे छोड़कर 1949 में मुंबई आ गए। यहीं उनकी मुलाकात कालजयी व क्रांतिधर्मी चिंतक राममनोहर लोहिया से हुई। उन्होंने समाजवादी मजदूर संघ एवं निर्णायक श्रमिक आंदोलन का सिंहनाद किया और देखते ही देखते मुंबई में मजदूर संघों और राजनीति की धुरी बन गए। वे 1961 से 1968 तक बांबे म्यूनिसिपल कारपोरेशन के निर्वाचित सदस्य रहे। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने 1967 में उन्हें कद्दावर नेता और मुम्बई का बेताज बादशाह कहे जाने वाले केन्द्रीय मंत्री सदाशिव कानोजी पाटिल के विरुद्ध चुनाव में लोकसभा का टिकट दिया। जार्ज साहब पाटिल को हराकर सांसद बने। पूरे भारत में जार्ज फर्नांडीज का नाम गूंजने लगा। जार्ज फर्नांडीज ने 1974 में आल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष के रूप में हड़ताल की घोषणा की। भारत के इतिहास में इससे बड़ी हड़ताल कभी न हुई। लगभग 30 हजार मजदूर संघ के नेताओं की गिरफ्तारी हुई एवं 17 लाख कर्मचारियों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया। आपातकाल के दौरान जार्ज साहब लोहिया का अनुसरण करते हुए भूमिगत हो गए और लोकतंत्र के लिए लड़ते रहे। उन्होंने वही तरीका अपनाया, जिस तौर-तरीके का प्रयोग लोहिया जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किया था। बड़ौदा डायनामाइट प्रकरण में उन्हें पत्रकार किरीट भट्ट और के. विक्रम राव के साथ 10 जून को गिरफ्तार किया गया। हाथों में हथकड़ी पहने और ललकारते हुए उनकी तस्वीर उस दौरे की सबसे चर्चित व प्रेरक चित्र थी। आपातकाल के पश्चात वे जेल से रिहा हुए और 10 जून 1976 मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़े। लगभग तीन लाख मतों से जीतकर लोकसभा के सदस्य फिर मोरारजी देसाई मंत्री मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री बने। इन्होंने फेरा के तहत अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों कोका कोला व आईबीएम पर कार्यवाही की। वे विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री भी रहे। उन्होंने 1994 में समता पार्टी बनाई, इसके अलावा वे 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2009 तक देश के रक्षा मंत्री रहे। पोखरन परमाणु परीक्षण व कारगिल जीत उन्हीं के कार्यकाल के दौरान हुई। उल्लेखनीय है कि बतौर रक्षामंत्री उन्होंने उन सभी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया, जिन्हें रक्षामंत्री रहते नेताजी मुलायम सिंह यादव ने शुरू किया था, इसमें चीन के साम्राज्यवादी रवैया का विरोध भी शामिल है। जार्ज साहब के बाद यदि चीन के खिलाफ कोई नेता आज की तिथि में दिख रहा है तो वह मुलायम सिंह यादव ही हैं। यह दोनों नेताओं के वैचारिक साम्य को दर्शाता है। जब नेताजी ने 29 अगस्त, 2003 को तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का शपथ ली थी, जार्ज साहब शपथ समारोह में शामिल होने आए। यह उनका मुलायम सिंह जी के प्रति स्नेह भाव का द्योतक है। वे समाजवादियों को एकत्र कर देश में समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना के लिए सदैव प्रयासरत रहे हैं। उनकी सादगी बेमिसाल रही है। वे जब रक्षामंत्री थे, तब भी अपने कपड़े स्वयं धोते थे। उनके किरदार में कभी बनावट नहीं आई। सत्ता हो या विपक्ष, वे सदैव एक जैसे रहे। आज वे भले ही पूर्णतया स्वस्थ्य न हों, लेकिन उनके विचार और उनके दर्श सदैव स्वस्थ व प्रासंगिक रहेंगे। जार्ज साहब जैसी विभूतियां हमारी धरोहर हैं, हम उनके लंबे व निरोग जीवन की कामना करते है।

(लेखक वरिष्ठ समाजवादी नेता व विधानसभा के सदस्य है)