इरफ़ान-ए-हयात की शायरी समकालीन मुद्दों की सच्ची व्याख्या: इब्राहिम अल्वी

वरिष्ठ पत्रकार अहमद इब्राहिम अल्वी ने कहा कि आज सही मायनों में उस शायर की शायरी को ऊँचाई मिलती है जो समकालीन परिस्थितियों और मुद्दों को काव्यात्मक रूप में ढालकर अपने विचारों और भावों को अभिव्यक्त करता है। उन्होंने इरफ़ान ज़ंगीपुरी के काव्य संग्रह “इरफ़ान ए हयात” को उर्दू साहित्य में एक अमूल्य योगदान बताया। उन्होंने कविताओं की प्रशंसा और सराहना करते हुए संग्रह की उपयोगिता का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इरफ़ान ज़ंगीपुरी की शायरी देखकर मैं न केवल उनकी काव्य क्षमता का कायल हो गया हूँ, बल्कि बहुत प्रभावित भी हुआ हूँ।

वरिष्ठ पत्रकार अहमद इब्राहिम अल्वी आज यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में इरफ़ान ज़ंगीपुरी के ग़ज़ल संग्रह “इरफ़ान हयात” के विमोचन के अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में बोल रहे थे। डॉ. महमूद, डॉ. शैदा आज़मी और डॉ. रोशन तकी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

कार्यक्रम की शुरुआत कारी मिर्ज़ा मुहम्मद फुरकान द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत और आमिर वारसी द्वारा नात पाक पेश करने से हुई।
खुर्शीद फतेहपुरी ने संचालन किया। उन्होंने इरफ़ान ज़ंगीपुरी के नेकदिली, ईमानदारी, नैतिकता और शिष्टाचार, खुशमिजाज़ी, सादगी और धर्मपरायणता जैसे गुणों का उल्लेख किया और उनके कविता संग्रह “इरफ़ान ए हयात” की संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत की और ग़ज़ल संग्रह से कुछ चुनिंदा कविताएँ नमूने के तौर पर भी प्रस्तुत कीं। उन्होंने बताया कि इरफ़ान ज़ंगीपुरी द्वारा संकलित एक संग्रह 2023 में “ज़र्ब तबस्सुम” नाम से प्रकाशित किया जाएगा।

इस अवसर पर तीन मक़ालानिगारों (निबंधकारों) ने अपने मक़ाला प्रस्तुत किए। मक़ाला निगार सैयद गुलाम अब्बास हल्लौरी, जो एक शोधार्थी हैं, ने इरफ़ान ज़ंगीपुरी की शायरी की खूबियों का बयान किया और उसकी साहित्यिक व भाषाई विशेषताओं का वर्णन किया। उन्होंने इरफ़ान साहब को एक विश्वसनीय शायर बताया। उन्होंने कहा कि संग्रह में शामिल ग़ज़लें उच्च कोटि की और उच्च स्तर की हैं।

दूसरे मक़ालानिगार सहायक प्रोफेसर अली अकबर बिलग्रामी ने इरफ़ान ज़ंगीपुरी को इस परंपरा का संरक्षक और संरक्षक बताया। उन्होंने उनकी कर्बला कविताओं का विस्तृत विश्लेषण भी प्रस्तुत किया।

तीसरे निबंधकार, नया दौर के पूर्व संपादक डॉ. सैयद वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने अपने मक़ाले में इरफ़ान ज़ंगीपुरी के बुजुर्गों और माता-पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की और इरफ़ान ज़ंगीपुरी के नाम “इरफ़ान” को उनके व्यक्तित्व के मुताबिक बताया। उन्होंने उनकी शायरी को तीन कालखंडों में विभाजित किया। पहला कालखंड वह है जिसमें दबी हुई भाव-भंगिमाओं के साथ आभासी प्रेम की झलक मिलती है। दूसरा कालखंड नश्वर संसार की विभिन्न समस्याओं का चित्रण है। भावनाएँ और संवेदनाएँ हैं और तीसरा कालखंड वह है जिसमें वास्तविक प्रेम और कर्बला के तत्व उनकी शायरी में अधिक व्याप्त हैं। कर्बला के रूपक, उपमाएँ और संकेत प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।

डॉ. सिब्त हसन नक़वी, खुर्शीद अनवर रूमी नवाब, डॉ. रोशन तकी ने भी कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त किए। फ़रीद मुस्तफ़ा, शान आबिदी, रज़ा अब्बास तनवीर ने भी ग़ज़लें सुनाईं। कार्यक्रम में मुआज अख्तर, नवाब हैदर, यूपी उर्दू अकादमी के मोहसिन खान के साथ ही नासिर जरवली, जावेद बर्की, सलमान कलापुरी, डॉ. सरवत तकी, रिजवान हैदर, तबस्सुम खान समेत अन्य साहित्यकारों ने हिस्सा लिया.