लखनऊ
इमामबाड़ा गुफ़रान मआब में मुहर्रम की आठवीं मजलिस को ख़िताब करते हुए मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने वसीले की ज़रूरत और अहमियत पर क़ुरान और हदीसों की रौशनी में गुफ़्तुगू की।

मौलाना ने अपने बयान में कहा कि ख़ुदा हमारी शह रगे हयात से ज़्यादा क़रीब हैं उसके बावजूद क़ुरआने मजीद में अल्लाह ने हुक्म दिया है कि वसीला तलाश करो ताकि उस तक रसाई हो सके। यानी बग़ैर वसीले के हरगिज़ ख़ुदा तक नहीं पहुंचा जा सकता जबकि वो हमारी शह रगे हयात से ज़्यादा हमसे क़रीब हैं, ये अहमियत और ज़रूरते वसीला पर अहम दलील हैं। मौलाना ने कहा कि मुहम्मद व आले मुहम्मद (स अ व) को वसीला क़रार दिए बग़ैर मारिफ़ते ख़ुदा हासिल नहीं हो सकती और ना उनकी शिफ़ाअत के बिना निजात मुमकिन हैं।

मौलाना ने मुसलमान मुहद्देसीन की किताबों का हवाला देते हुए साबित किया कि अम्बिया-ए-किराम ने भी इब्तेला और मुसीबतों के वक़्त मुहम्मद व आले मुहम्मद (स अ व) को वसीला क़रार दिया हैं जिससे ये मालूम होता हैं कि मुहम्मद व आले मुहम्मद (स अ व) से तमस्सुक इख़्तेयार करना और उन्हें वसीला क़रार देना सुन्नतें अम्बिया हैं।

मजलिस के आख़िर में मौलाना ने अलमदारे करबला हज़रत अब्बास अ.स की वफ़ादारी, शुजाअत और मज़लूमान शहादत के वाक़ये को तफ़सील के साथ बयान किया। मजलिस के बाद शबीहे अलमे मुबारक की ज़ियारत कराई गयी। अंजुमन ने नौहा ख़्वानी व सीना ज़नी के फ़राएज़ अंजाम दिए।