मोहम्मद आरिफ नगरामी

रमजानुल मुबारक का माहे मुकद्दस रहमतो बरकतो, साअदतों और फुयूज व इनामाते रब्बानी का गिरा बहां मजमुवा है, अहले ईमान इसकी आमद का पूरे साल दीदा व दिल फर्शे राह किये रहते है। इस मुबारक महीने में अल्लाह ताला की रहमत मूसला धार बारिश की तरह बरसती है। उससे फायदा वही लोग उठायेंगे जो उसकी रहमत के सच्चे तलबगार है दिन के वक्त अल्लाह की रहमत लूटने का जरिया रोजा है और रात के वक्त अल्लाह ताला की रहमते लूटने का जरिया ‘‘तरावीह’’ की नमाज है। जिस तरह दिन में रोजा रखने को अजरो सवाब है उसी तरह रात को तरावीह की नमाज का सवाब है। सरकारे दो जहां हजरत मोहम्मद (स) ने अपनी उम्मत को इसकी तलकीन फरमाई है कि रमजान के दिनों में रोजे रखो और उसकी रातों में कयाम करो।

तरावीह की नमाज मर्दाे और औरतों दोनों के लिए सुन्नते मोअक्किदा है फर्क सिर्फ इतना है कि औरतों के लिए मस्जिदजा कर जमाअत के साथ पढ़ना जरूरी नही है, वह घर पर अदा करे, लेकिन अदाएगी उनके लिए भी जरूरी है। पूरे रमजानुल मुबारक मेें बीस रिकअत तरावीह बा जमाअत पढ़ना सुन्नत है, मस्जिद में तरावीह की जमाअत सुन्नते किफाया है, यानी अगर मस्जिद में तरावीह की नमाज न होगी तो अहले वबाल उन पर होगा। नमाजे तरावीह में तरावीह में पूरे महीने में एक मरतबा कुरआन मजीद का तरतीब वार पढ़ना और सुनना सुन्नते मोअक्किद है। फिका की मशहूर किताब में तरावीह में एक मरतबा कुरआने पाक खत्म करना सुन्नत है, दूसरी मरतबा फजीलत और तीन मरतबा अफजल है। जब रमजानुल मुबारक का चांद देखा जाए, उसी रात में तरावीह शुरू की जाए और जब ईद का चांद नजर आये तो छोड़ दी जाए। तरावीह की नमाज को बिला उज्र छोड़ने वाला गुनाहगार है, तरावीह का अपनी मस्जिद में बा जमाअत अदा करना मसनून है, दुकानों में या और जगहों पर तरावीह का जमाअत से अदा करना और मस्जिद न जाना खिलाफे सुन्नत है, अगर अपनी मस्जिद में तरावीह न होती हो, या इमाम साहब गलत पढ़ाते हो तो ऐसी सूरत में दूसरी मस्जिद जाना दुरूस्त है, दाढ़ी मुडाने वाले या एक मुश्त से कम दाढ़ी रखने वाले और फेशन परस्त इमाम के पीछे तरावीह की नमाज पढ़ना मकरूह है।