वाराणसी:
भारत में अस्तरीय आहार या कुपोषण संबंधी गैर संक्राम रोग (डीआर-एनसीडी) बढ़ रहे हैं। लाखों बच्चों पर इनका खतरा है। भारत में पहले ही दुनिया के सबसे अधिक कुपोषित बच्चे हैं और लगभग 1.5 करोड़ मोटापा ग्रस्त और 45 मिलियन अविकसित बच्चे हैं। देश को कुपोषण के दोहरे बोझ (डीबीएम) से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण और सामयिक नीतिगत प्रयास करते हुए वाराणसी में एक सार्वजनिक संवाद का आयोजन किया गया। इसमें प्रमुख राजनीतिक दलों के वरिष्ठ सदस्यों ने पैक पर सामने ‘गुड फाॅर इंडिया’ लेबल (एफओपीएल) लगाने के कानून की मांग की।

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में डीबीएम के हाल के अध्ययन बताते हैं कि सबसे कम आय वाले क्विंटाइल के बच्चों और वयस्कों में उच्च आय वाले क्विंटाइल की तुलना में ज्यादा वजन और मोटापे का अधिक प्रकोप है। अधिक वजन/मोटापा की समस्या बढ़ने की वजह समाज के सभी वर्गों में अल्ट्रा-प्राॅसेस्ड खाद्य पदार्थों का तेजी से चलन, उपलब्धता और उपभोग बढ़ना है। भारतीय खाद्य और पेय उद्योग 34 मिलियन टन बिक्री कारोबार के साथ इस क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग है।

अध्ययन बताते हैं कि भारत के शहरी और ग्रामीण दोनों घरों में सप्ताह में दो बार से अधिक 53 प्रतिशत बच्चे नमकीन पैकेज्ड फूड जैसे चिप्स और इंस्टेंट नूडल्स खाते हैं, 56 प्रतिशत बच्चे चॉकलेट और आइसक्रीम जैसे मीठे पैकेज्ड फूड खाते हैं और 49 प्रतिशत बच्चे चीनी से-मीठे पैकेज्ड पेय पीते हैं। लेकिन विशेषज्ञों ने यह चिंता व्यक्त की है कि अन्य किसी खतरे की तुलना में पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आहार से अधिक लोग दम तोड़ देते हैं और यह मोटापा, टाइप 2 डायबीटीज़ और हृदय रोग का एक प्रमुख कारण है।

आयोजन को वर्चुअली संबोधित करते हुए ए.के. शर्मा, यूपी राज्य उपाध्यक्ष, बीजेपी और एमएलसी, ने कहा, “बच्चों को स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने में भारत की रणनीतिक जीत आसान होगी यदि हम ऐसी सामग्रियों के पैक पर सामने सरल, व्याख्यात्मक और अनिवार्य लेबल लगाएं। लोगों को स्वस्थ विकल्प देने और जीवन रक्षा के प्रयास को सशक्त बनाने के लिए नीतिगत कदम उठाने का समय आ गया है। हम इसमें एफएसएसएआई का समर्थन करते हैं और हमें एफओपीएल कानून का इंतजार है जो इस देश के लोगों के हित में होगा।’’

अल्ट्रा-प्राॅसेस्ड खाद्य और पेय पदार्थों का बुरा असर अल्पविकसित या ऐसे बच्चों पर अधिक दिखता है जिन्हें जीवन के आरंभिक काल में अपर्याप्त पोषण मिला। उन्हें मोटापा और वयस्क अवस्था में एनसीडी का अधिक खतरा है। प्री-पैकेज्ड, अल्ट्रा-प्राॅसेस्ड खाद्य और पेय पदार्थ देश के सभी हिस्सों में आसानी से उपलब्ध हैं और बिकते हैं। सभी आय वर्ग के लोग ये खरीदते हैं। इन्हें प्राॅसेस करने में ज्यादा मीठा, सोडियम और सैचुरेटेड फैट का इस्तेमाल होता है जिनसे डायबीटीज़, हृदय रोग, लीवर और गुर्दे को नुकसान पहुँचने और कुछ कैंसरों का खतरा भी बढ़ता है। एफओपीएल को प्रभावी बनाने का पहला कदम विज्ञान और प्रमाण आधारित पोषक तत्व प्रोफाइल मॉडल तैयार करना है जिससे इन पोषक-रोधी तत्वों की की अधिकतम सीमाएं अनिवार्य रूप से निर्धारित होंगी।

कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालजी देसाई ने इस कार्यक्रम में कहा, “अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य और पेय पदार्थ सस्ते होते हैं और हर जगह उपलब्ध हैं इसलिए ये शहर के श्रमिकों का समय बचाते हैं और उनके बच्चों को पसंद आते हैं। संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की आमदनी बढ़ने से प्राॅसेस्ड खाद्य पदार्थों की चाहत और उपभोग में निरंतर वृद्धि दिख रही है। आर्थिक रूप से पिछड़े इस समाज में लोगों की पसंद बदलने की बड़ी वजह उद्योग जगत की चमक-दमक भरी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी भी है। ऐसे लोगों के प्रतिनिधि होने के नाते हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बाजार में उपलब्ध सभी खाद्य पदार्थों में मौजूद हानिकारक सामग्रियों की अधिकतम सीमा घोषित हो और यह वैज्ञानिक रूप से मान्य हो।’’

इस बारे में यूपी के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने कहा, “उत्तर प्रदेश, खास कर वाराणसी में प्रवासी श्रमिकों में ‘खाने के लिए तैयार’ या अल्ट्रा-प्रोसेस्ड चीजें खाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसकी बड़ी वजह या तो खाना पकाने का समय या फिर सुविधा का नहीं होना है। ऐसे में सख़्ती से एफओपीएल लागू करने से प्राॅसेस्ड चीजों में हानिकारक नमक, चीनी और सैचुरेटेड फैट की अधिकतम मात्रा निर्धारित हो जाएगी जिससे इस गरीब और सबसे कमजोर तबके के लोगों के स्वास्थ्य का स्तर बेहतर होगा।’’

ग्लोबल हेल्थ एडवोकेसी इन्क्यूबेटर (जीएचएआई) की क्षेत्रीय निदेशक वंदना शाह ने कई देशों जैसे कि चिली, ब्राजील, मैक्सिको और अर्जेंटीना में एफओपीएल लागू होने का अनुभव बताते हुए कहा, “वार्निंग लेबल अब तक का सबसे असरदार एफओपीएल लेबलिंग सिस्टम है। इससे उपभोक्ता तुरंत और आसानी से किसी उत्पाद के हानिकारक तत्वों को पहचान जाते हैं और लोगों को नहीं खरीदने के लिए कहते हैं। उदाहरण के लिए चिली में ‘हाई इन’ लेबल की काली अष्टकोण चेतावनी के परिणामस्वरूप मीठे पेय पदार्थों की खरीद में तेज गिरावट आई है। मोटापा दुनिया के सभी देशों में सभी आय समूहों में बढ़ रहा है और इसके प्रमाण हैं कि कमजोर सामाजिक आर्थिक स्थिति के लोगों में सेहत के लिए खराब खान-पान का ज्यादा चलन है। ऐसे में भारत के लिए कुपोषण की दोधारी तलवार से लड़ने के लिए डब्ल्यूएचओ से मान्यता प्राप्त कटऑफ के साथ असरदार एफओपीएल अपनाकर दुनिया के सामने मिसाल रखने का अवसर आ गया है।

डॉ. लेनिन रघुवंशी, संस्थापक और सीईओ, पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) ने सम्मेलन को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, “भारतीय बच्चों के पोषण अधिकारों की सुरक्षा के लिए राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मानवाधिकार रक्षकों के साथ एकजुट हो गए हैं। सभी का साझा एजेंडा भारत में एफओपीएल का नियम लागू कराना है।’’

पीवीसीएचआर, कॉमन मैन ट्रस्ट, सावित्री बाई फुले महिला फोरम (एसडब्ल्यूएफ) और इसके अभियान के सहयोगी पीपुल्स इनिशिएटिव फाॅर पार्टिसिपेटरी एक्शनऑन फूड लेबलिंग (पीआईपीएएल) नामक राष्ट्रीय अभियान चला रहे हैं। इसके तहत वे एफओपीएल पर तत्काल नीति बनाने की मांग कर रहे हैं। भारत में एफओपीएल के नियम लागू करने की योजना कई वर्षों से विचाराधीन है। पिछले कुछ महीनों के दौरान एफएसएसएआई ने जल्द ही एक नया नियम तैयार होने की घोषणा की है।