नई दिल्ली: वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ देश की कमान संभाली थी तो जनता के साथ ही उद्योग जगत में भी उम्‍मीद जगी थी। मनमोहन सिंह की सरकार पर ‘पॉलिसी पारालिसिस’ (नीतिगत निर्णय लेने में अक्षमता) का आरोप लगाया गया था। देश की आर्थिक स्थिति को लेकर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (CMIE) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों से देश की अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर बेहद निराशाजनक तस्‍वीर सामने आई है। दिसंबर तिमाही (वित्‍त वर्ष 2018-19) में निवेश से लेकर नई परियोजनाओं तक में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। यह पिछले 14 वर्षों के सबसे न्‍यूनतम स्‍तर तक पहुंच गया है। CMIE की ओर से जारी डेटा के अनुसार, दिसंबर तिमाही (अक्‍टूबर-दिसंबर) में विभिन्‍न कंपनियों (सरकारी और निजी क्षेत्र) ने एक लाख करोड़ रुपए मूल्‍य की नई परियोजनाओं की घोषणा कीं। सितंबर तिमाही के मुकाबले यह 53 फीसद और पिछले साल की इसी तिमाही की तुलना में 55 फीसद तक कम है। मार्च में समाप्‍त हुई तिमाही में कंपनियों ने 4 लाख करोड़ रुपए मूल्‍य की नई परियोजनाओं की घोषणा की थी। यह आंकड़ा जून में 2.95 लाख करोड़ रुपए और सितंबर तिमाही में 2.12 लाख करोड़ रुपए तक था। जून 2013 से दिसंबर 2018 के बीच के आंकड़ों की तुलना करें तो दिसंबर 2014 में संपन्‍न तिमाही में सबसे ज्‍यादा 6.4 लाख करोड़ रुपए मूल्‍य की नई परियोजनाओं की घोषणा की गई थी। दिलचस्‍प है कि 2014 में नरेंद्र मोदी सत्‍ता में आए थे और वर्ष 2018 के अंत में एक बार फिर से जनता के बीच जाने की तैयारी में हैं।

नई परियोजनओं की घोषणा और निवेश के मामले में सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों की हालत कमोबेश एक समान है। CMIE के आंकड़ों के अनुसार, निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा दिसंबर तिमाही में (सितंबर तिमाही की तुलना में) नई परियोजनाओं की घोषणा में 62 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। पिछले साल की इसी तिमाही से तुलना में यह आंकड़ा 64 फीसद है। सरकारी क्षेत्र की कंपनियों में भी नए निवेश को लेकर सुस्‍ती का आलम है। हाल में संपन्‍न दिसंबर तिमाही में सरकारी कंपनियों ने सितंबर तिमाही की तुलना में 37 फीसद तक कम नई पर‍ियोजनाओं की घोषणा की। तकरीबन सभी सेक्‍टर्स में नई परियोजनाओं की घोषणा में बड़ी कमी दर्ज की गई है।

CMIE के आंकड़ों में पूर्व में घोषित परियोजनाओं के बीच में ही लटकने की भी बात कही है। इससे सबसे ज्‍यादा पावर और मैन्‍यूफैक्‍चरिंग सेक्‍टर प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, इसकी सबसे बड़ी वजह फंड की कमी है। पैसे न होने की वजह से कई परियोजनाओं पर बीच में ही काम रुक गया है। दरअसल, जोखिम वाले कर्ज (NPA) को लेकर आरबीआई की सख्‍ती से बैंकों ने भी नया लोन देने को लेकर अतिरिक्‍त सावधानी बरतने लगे हैं।

नई परियोजनाओं और निवेश में गिरावट का सीधा असर रोजगार के नए अवसरों पर भी पड़ता है। उद्योग-धंधों की रफ्तार धीमी पड़ने से रोजगार के नए अवसरों पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। कंपनियों द्वारा नई परियोजनाओं की घोषणा में व्‍यापक कमी का प्रभाव रोजगार सृजन पर भी देखने को मिल रहा है।