प्रो. फरहत बशीर खान

भारतीय टेलीकाॅम सेक्टर नई ऊंचाई छूने को तैयार है पर पहले से चली आ रही कुछ समस्याएं बढ़ गई हैं। दूरसंचार से देश को आपस में जोड़ने का सपना कठिन लग रहा है। सबसे बड़ी चुनौती टेलीकाॅम सेक्टर को लेकर गलतफहमियों को दूर करने की है और जन-जन को बताना है कि मोबाइल टॉवर के रेडियेशन का सेहत पर कोई गलत असर नहीं है।

समस्या केवल गांव-देहात की नहीं है बल्कि बड़े शहरांे में भी लोग सच से अनजान हैं। गलत धारणाएं बनी हुई हैं और टेलीकाॅम सेक्टर के लिए आधारिक संरचना का विकास करना कठिन हो रहा है और इसका खामियाजा दूरसंचार सेवा के सभी ग्राहक भुगत रहे हैं। घनी आबादी में आवासीय काॅलोनियों, स्कूलों और अस्पतालों के आसपास टॉवर नहीं लगने से दूरसंचार संपर्क में बाधा बढ़ रही है। ऐसे में सेवा सुधरना मुमकिन नहीं लगता है। जहां तक इस सेक्टर की बात है राइट आॅफ वे (आर ओ डब्ल्यू) ‘लक्ज़री’ नहीं है। सूचना प्रसारण मंत्री श्री मनोज सिन्हा ने गैज़ेट (राज-पत्र) अधिसूचना कर केंद्र सरकार की राइट आॅफ वे (आर ओ डब्ल्यू) नीति जारी कर दी है। यह एक बड़ा कदम है पर पूरे देश में इसके क्रियान्वयन पर निगरानी रखनी होगी। विभिन्न राज्यों को भी निगरानी में रखना होगा जिनमें जीडीपी बढ़ना बेहद जरूरी है। इसके लिए टेलीफोनी की सुविधा और इंटरनेट का घर-घर पहंुचना आवश्यक है।

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (डब्ल्यू एच ओ) समेत कई वैश्विक एजेंसियों और संगठनों, सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरणों और यहां तक कि कैबिनेट मंत्रियों और सरकारी संस्थानों ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की है कि टेलीकाॅम टॉवर के रेडियेशन से डरने की कोई बात नहीं है पर समाज में यह डर बना हुआ है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (डब्ल्यू एच ओ) ने पिछले 30 वर्षों के 25,000 से अधिक आलेखों के विश्लेषण के बाद बताया कि टेलीकाॅम टॉवर और हैंडसेट से उत्पन्न न्यूनतम स्तर के ईएमएफ फील्ड का सेहत पर कोई असर नहीं होता है।

भारत सरकार ने मोबाइल टॉवर से ईएमएफ रेडियेशन को सीमित रखने के अंतर्राष्ट्रीय नाॅन-आयनाइज़िंग रेडियेशन प्रोटेक्शन आयोग (आई सी एन आई आर पी) के सुरक्षा नियमों को स्वीकार किया। इतना ही नहीं, इंटर.मिनिस्टीरियल ग्रुप (आई एम जी) की अनुशंसा पर सरकार ने दुनिया के कई विकसित देशों से 10 गुना कड़े नियम लगाने का निर्णय लिया। इसका अर्थ भारत में ईएमएफ रेडियेशन वैश्विक मानक का दसवां भाग है। परंतु टेलीकाॅम टॉवर के रेडियेशन को लेकर भ्रामक जानकारी के परिणामस्वरूप टेलीकाॅम टॉवर लगना कठिन हो रहा है।

ईएमएफ मानकों के अनुपालन के लिए दूरसंचार विभाग की फील्ड यूनिट टेलीकाॅम इन्फोर्समेंट रिसोर्स एण्ड माॅनिटरिंग (टी ई आर एम) टेलीकाॅम कम्पनियों और बेस ट्रांसीवर स्टेशन (बीटीएस) साइट के स्वसत्यापन प्रमाण पत्रों का संपूर्ण अंकेक्षण करता है। यदि किसी बीटीएस टॉवर को निर्धारित ईएमएफ मानकों का उल्लंघन करते पाया जाता है तो इस स्थिति में 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि इस तरह का उल्लंघन बार बार होता है तो टॉवरों को हटाया भी जा सकता है।

आज इस समस्या का हल केंद्र के सहयोग से कार्यरत राज्य सरकारों के पास है। राजस्थान और ओडिशा की हाल की दो नीतियां अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय हैं। टेलीकाॅम साइट की सुविधा देश की प्रगति के लिए जरूरी है। यह हकीकत नगर निगमों और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों को समझना होगा। टेलीकाॅम टॉवर लगाना इन सभी के लिए सरकारी जमीनों और भवनों का अतिरिक्त आर्थिक लाभ लेना है। वैसे भी यह सेक्टर वाॅयस से डाटा के सफर में कठिनाइयों के दौर से गुजर रहा है। ‘टैरिफ वार’ से ग्राहक सबसे अधिक फायदे में हैं। परंतु अन्य उद्योग की तरह इस सेक्टर में भी नए-नए समीकरण बन रहे हैं जिनका लाभ पूरे देश को होगा यदि सरकार अभी इस सेक्टर के हित में सही नीतियां लाए। वर्तमान में इस सेक्टर पर 4.6 लाख करोड़ रु. का भारी बोझ है। और लगभग 2 लाख करोड़ रुपयों का तत्काल निवेश चाहिए ताकि इनोवेशन हो, हम प्रतिस्पर्धा में बने रहें और पूरे देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हो। सामने नई तकनीकियां जैसे कि 5जी, आईओटी और एम2एम नजर आ रही हैं। इनके लिए निरंतर और बाधारहित नेटवर्क चाहिए। ऐसे में टेलीकाॅम की पूरी कोशिश है कि पैसे की जरा भी फिजूलखर्ची न हो। सरकार भी कारोबार करना आसान बनाने पर जोर दे रही है। नागरिकांे की जागरूकता और सरकार के सहयोग से नए कनेक्शन बनेंगे और देश में जबरदस्त तरक्की होगी।

कनेक्टिवीटी का आधार इन्फ्रास्ट्रक्चर है और देश की अर्थव्यवस्था को इसका बड़ा लाभ है। सरकार यह समझते हुए इंडस्ट्री के साथ मिल कर अधिकांश मसलों का हल निकालने में लगी है। बीते कुछ महीनों के दौरान, ओडिशा और राजस्थान सरकार ने अपने-अपने राज्यों में टेलीकाॅम इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने के लिए राइट आॅफ वे (आरओडब्ल्यू) की नई नीतियां अपनाई हैं। ये नई नीतियां टेलीकाॅम इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदाताओं को अनुमति देने की प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाती हैं और टेलीकाॅम व इंटरनेट के उच्च गति वाले नेटवर्क के लिए जरूरी महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने में दूरसंचार उद्योग की सहायता करने में अत्यधिक सफल हैं। राइट आॅफ वे की व्याख्या टेलीकाॅम टॉवर और ओएफसी जैसी सुविधाओं जैसी संचार सेवाओं के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण हेतु आवश्यक अनुमति के रूप में की जाती है। इन नियमों से पहले, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदाताओं को विभिन्न प्राधिकरणों/संगठनों से अनुमति प्राप्त करने के लिए और अलग-अलग शुल्क जमा और कई जटिल, अनियंत्रित प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता था। प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करते हुए, ये नए नियम टेलीकाॅम इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थापना को आसान और तीव्रतर बनाते हैं। एक तरफ जहां दूसरसंचार एक मुख्य विषय है, तो वहीं दूसरी तरफ सार्वजनिक या निजी संपत्तियों के उपयोग की अनुमति प्राप्त करने हेतु टेलीकाॅम और टेलीकाॅम डिवेलपर्स के लिए सरकार की सहायता आवश्यक है।

महज दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने के अतिरिक्त टेलीकाॅम टॉवर का उपयोग समस्त विश्व में आपदा प्रबंधन समेत अन्य कामों के लिए भी किया जाता है। ये टॉवर कनेक्टिविटी के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, वे एक अनिवार्य आवश्यकता भी हैं। किसी भी प्राकृतिक आपदा या आपात स्थिति में दूरसंचार सेवाएं रक्षा का पहला माध्यम हैं। इसलिए हर कोने से कनेक्ट होना जरूरी और साइटों तक पहुंच महत्वपूर्ण है और महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी उपयोगी है।

विश्व के दूसरे सबसे बड़े मोबाइल फोन बाजार की सेवा के लिए भारत की दूरसंचार कंपनियां प्रति सब्स्क्राइबर स्पेक्ट्रम का न्यूनतम उपयोग करती हैं। स्पेक्ट्रम जितना कम होगा, टॉवरों की जरूरत उतनी ही अधिक होगी। इसी प्रकार, किसी खास क्षेत्र में लोग सीमित स्पेक्ट्रम का अधिक से अधिक उपयोग कर सकें इसके लिए अधिक अधिक टॉवरों की जरूरत है।

यह स्थिति तब है जब अपने महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को पूरा करने के लिए सरकार लगभग पूरी तरह से दूरसंचार क्षेत्र पर निर्भर है। तकनीकियों की अगली पीढ़ी के कवरेज और कनेक्टिविटी के बिना, इंटरनेट आॅफ थिंग्स एंड मषीन को मशीनों से जुड़े उपकरणों से जोड़ना प्रायः असंभव होगा।

मोबाइल टॉवर की ठोस व्यवस्था से डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सीटीज़, जन धन योजना, स्किल इंडिया, ब्राॅडबैण्ड फाॅर आॅल, आदि सरकार की तमाम महत्वाकांक्षी योजनाएं सफल होंगी। इसलिए आज जरूरत है कि समाज के जानकार लोग मोबाइल टॉवर रेडियेशन को लेकर मचे बवाल का भांडाफोड़ करें। लोगों के मन में बैठा डर दूर करने में योगदान दें ताकि देश के विकास और खुशहाली के रास्ते में रुकावट नहीं आए। 2022 तक सही मायनों में आधुनिक भारत के निर्माण का माननीय प्रधानमंत्री का सपना सच करने के लिए यह जरूरी है। आज यह हम सब की जिम्मेदारी है कि टेलीकाॅम टॉवर से रेडियेशन का भ्रम तोड़ें क्योंकि देश को आगे बढ़ना है तो दूरसंचार को दुरुस्त होना होगा। इसी से जन-जीवन में खुशहाली आएगी।

प्रो. फ़रहत बसीर खान एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर के सबसे वरिष्ठ फेकल्टी मेम्बर हैं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के जर्नल आॅफ साइंटिफिक टेम्पर के संपादक मंडल में भी शामिल हैं। प्रो. खान के नई मीडिया, संचार, टेलीकम, इंटरनेट और तकनीक पर ज्ञानवर्द्धक आलेखे जाने-माने प्रिंट मीडिया, इलैक्ट्राॅनिक और आॅनलाइन मीडिया में छपते रहे हैं। देश में वैज्ञानिक सोच के विकास में उनका निरंतर योगदान रहा है।