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क्या रामलीला मैदान अपना 1977 का इतिहास दोहराएगा?

(आलेख : राजेंद्र शर्मा) इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि शराब घोटाले के आरोपों में ईडी द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी ठीक
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मनरेगा को ख़त्म करने की साजिश, काम के अधिकार को बचाने के लिए भाजपा को हराना ही एकमात्र रास्ता

(आलेख : विक्रम सिंह) हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के वर्किंग पेपर नंबर 107 में ग्रामीण भारत में नागरिकों की क्रय शक्ति में नकारात्मक रुझान का जिक्र किया है। इसमें
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बांड घोटाला क्या रंग नहीं दिखाएगा?

(आलेख : राजेंद्र शर्मा) क्या चुनावी बांड से संबंधित रहस्योद्घाटनों का, अगले 19 अप्रैल से शुरू होने जा रहे आम चुनाव के सिलसिले पर कोई असर नहीं पड़ेगा? कारोबारी दुनिया के कर्णधारों
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… क्या डर है, जिसको छुपा रहे हो!!

(आलेख : बादल सरोज) लगने को तो अनेक को लग सकता है कि हमारे प्रधानमंत्री जी बड़े विनोदी हैं, मजाकिए भी हैं। हालांकि अगर ऐसा लगता है तो कोई अजीब बात भी
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सुदामा और उसके चावल

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा) ये तो विपक्ष वालों की अच्छी बात नहीं है। मोदी जी ने पहले ही चेता दिया था कि कृष्ण और सुदामा का रिश्ता पवित्र है। उनका लेन-देन पार्थिव
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गांधी मैदान ने नानी याद दिलाई : परिवार की ढूंढ-तलाश में निकले मोदी

(आलेख : बादल सरोज) जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें करीब आ रही हैं, मोदी और उनकी पार्टी, जिसका नाम अभी तक भाजपा है, की बेचैनी और घबराह्ट बढ़ती ही जा रही हैं। स्वाभाविक
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चार सौ पार” के डरावने सपने

(आलेख : राजेंद्र शर्मा) जैसा कि आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था, अपने लोकसभा सदस्य, अनंत कुमार हेगड़े के बयान से भाजपा ने किनारा कर लिया है। कर्नाटक से भाजपा के
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पब्लिक के डबल मज़े, डेमोक्रेसी भी, तानाशाही भी!

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा) अब तो मोदी जी के विरोधियों को भी झख मारकर मानना ही पड़ेगा; मोदी जी अपने भारत को वाकई डेमोक्रेसी की मम्मी बना दिए हैं। अब तो वी-डेम
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एसबीआई 2014 से ही है खालाजी का घर

(टिप्पणी : बादल सरोज) बात 2014 की है। अभी सेहरा बंधने के निशान मिटे भी नहीं थे – संसद की सीढियां उन पर बहाए गए आंसुओं से अभी भी गीली थी …
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युवाओं को मोदी का अनूठा टास्क : सेल्फी खेंचो –एप्प में डाल तमाशा देखो!

(आलेख : बादल सरोज) भाजपा के सुप्रीमो युगपुरुष मोदी जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि देश की जनता जब उनसे प्रधानमंत्री – जिस रूप में वे शायद ही कभी रहे